भारतीय वुड और डेकोरेटिव पैनल उद्योग सामान्य रूप से चीन, इंडोनेशिया, यूरोप, अफ्रीका, ईरान, अमेरिका, ताइवान, बर्मा, दक्षिण कोरिया आदि से आयातित कच्चे माल पर निर्भर हैं। समुद्री माल ढुलाई भाड़ा के ज्यादा होने और कंटेनरों की कम उपलब्धता ने वास्तव में सप्लाई को बुरी तरह प्रभावित किया है। दूसरी तरफ सप्लयार कच्चे माल की लंबी जांच प्रक्रिया और अनुचित पूछताछ के लिए पोर्ट प्राधिकरण और सरकारी अधिकारियों को दोष दे रहे हैं, जिससे कच्चे माल प्राप्त करने में अधिक देरी हो रही है।
आयातित कच्चे माल की लागत पिछले 5 महीनों में 20 प्रतिशत से लेकर 100 फीसदी तक बढ़ी है, क्योंकि कोविड महामारी के चलते कई प्लांट बंद हुए हैं। लेकिन बड़ी शिपिंग लाइनों के बंद करने से समुद्री माल भाड़ा बहुत ज्यादा बढ़ गई है, बंदरगाहों पर देरी का कारण कंटेनरों की उपलब्धता कम होना है। यह सीधे तौर पर भारतीय लेमिनेट कंपनियों, पीवीसी बोर्ड उत्पादकों, पीवीसी लैमिनेट्स, डेकोरेटिव विनियर आदि की क्षमता उपयोग को प्रभावित कर रहा है। एल्युमीनियम कम्पोजिट पैनल (एसीपी) के उत्पादकों और यहां तक कि हार्डवेयर और एडहेसिव उद्योगों को भी केमिकल, कमोडिटी और एल्यूमीनियम कॉइल में अचानक वृद्धि के चलते प्लांट चलाना मुश्किल लग रहा है। आयातित फेस विनियर और मेलामाइन पर निर्भरता ने पहले से ही भारतीय प्लाईवुड उद्योगों की रिकवरी धीमी कर दी है।
आयातित कच्चे माल की खरीद में गड़बड़ी न केवल अनिश्चितता का कारण बन रही है, बल्कि कई छोटे प्लेयर्स को कारोबार समेटने पर मजबूर कर रही है। नियमित सप्लाई बनाए रखने के लिए संगठित ब्रांड और बड़े प्लेयर 1 से 2 महीने के कच्चे माल की फॉरवर्ड बुकिंग करते हैं, लेकिन यह भी अब समाप्त हो गया है। कोविड के लॉकडाउन खुलने के बाद वुड पैनल उद्योग और व्यापार की रिकवरी में सकारात्मक थी, लेकिन आयात की दिक्क्तें सभी स्टेकहोल्डर्स के लिए एक और झटका है।