लेमिनेट मैन्युफैक्चरर्स के लिए क्राफ्ट पेपर अभी भी मुश्किलें पैदा कर रहा ह

person access_time   3 Min Read 12 April 2021

क्राफ्ट पेपर बाजार काफी ज्यादा अस्थिर होने के कारण ऑब्जर्वेंट क्राफ्ट पेपर उपयोग करने वाले सभी उद्योग परेशांन हैं। क्राफ्ट पेपर में पिछले 3 महीनों से मांग और आपूर्ति काफी बेमेल है, जिससे इस पर निर्भर यद्योग जैसे डेकोरेटिव लैमिनेट या कोरोगेटेड बॉक्स उद्योग पर भारी दबाव है। इनदोनों उद्योग पर गहरा प्रभाव पड़ा है और सप्लाई व कीमतों में असन्तुलन के चलते बंद होने के कगार पर है। बी ग्रेड क्राफ्ट जो पहले 25 रुपये के आसपास था, आज 42 रुपये प्रति किलोग्राम पर बिक रहा है, यानी महज 5 महीनों में कीमतों में 75 फीसदी का उछाल है।

ऐसे हालात पिछले 4 महीनों से बरकरार है और बिगड़ता ही जा रही है, जिसके कारण न केवल लेमिनेट इंडस्ट्री बल्कि 30,000 करोड़ के टर्नओवर वाली कोरोगेटेड बॉक्स उद्योग भी ढहता जा रहा है। 11000 करोड़ की डेकोरेटिव इंडस्ट्री वर्तमान परिस्थितियों के चलते बेड़ियों में बंधी है, जिसके कारण विभिन्न उत्पादों और कंपनियों के तैयार उत्पाद (एचपीएल) की कीमतें 20 से 30 फीसदी तक बढ़ गई हैं। कई छोटी और मंझोली कम्पनियाँ नकद घाटा उठा रहीं हैं और वे बाजार में टिक पाने में असमर्थ हैं।

प्लाई रिपोर्टर के अनुसार मुख्य रूप से इसके दो कारण हैं, चाइना फैक्टर और कंटेनर की कमी। इसके अलावा, लॉकडाउन के कारण, स्क्रैप पेपर का कलेक्शन नहीं हो रहा है, जिसके कारण बर्बाद डिब्बे आदि रीसाइक्लिंग के लिए सप्लाई चेन में वापस नहीं आ रहा है। पेपर मिलों का मानना है कि इन कारणों से उनके इनपुट कॉस्ट बढ़ गये हैं इसलिए उनके अंतिम उत्पाद, क्राफ्ट पेपर की कीमतें बढ़ी है।

उद्योग के अनुसार सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि पेपर मिलें क्राफ्ट पेपर को घरेलू खपत के लिए रखने के बजाए, बेहतर कीमत हासिल करनें के लिए चीन को निर्यात कर रही हैं, जिससे मेटेरियल की कमी है। 2018 में जहां चीन को कुछ भी क्राफ्ट पेपर निर्यात नहीं होता था, वहीं 2020 में भारत 2 मिलियन टन क्राफ्ट पेपर का निर्यात किया, जो घरेलू खपत का 25 प्रतिशत है। इन सभी कारणों से उद्योग 4.5 मिलियनटन की कमी से जूझ रही है, जो क्राफ्ट पेपर की सालाना जरूरत का 60 फीसदी है।

दूसरी तरफ क्राफ्ट उत्पादक कंपनियां बढ़ती वर्किंग कैपिटल nकी आवश्यकता की बात कर रही हैं। क्राफ्ट पेपर मैन्युफैक्चरर आशीष गुप्ता का कहना है कि 10 टन क्राफ्ट पेपर जो 2 लाख रुपये का होता था, अब लगभग 4 लाख रुपये का होता है। इसके अतिरिक्त माल धुलाई भाड़ा भी है, जिसके चलते दोगुनी वर्किंग कैपिटल की आवश्यकता है। चूंकि भारतीय रिसाइकिल्ड क्राफ्ट पेपर उत्पादकों को अच्छे रेट पर चीन से पल्प शीट के बड़े ऑर्डर मिले हैं, यह भारत में क्राफ्ट पेपर की कमी के बड़े कारणों में से एक है। मैन्युफैक्चरर्स बताते हैं कि कीमतें निकट भविष्य में 30 से नीचे नहीं आएंगी।

इलमा ने क्राफ्ट पर गंभीर चिंता व्यक्त की है लेकिन यह तब तक कोई राहत नहीं देता प्रतीत होता, जब तक कि सरकार चीन को क्राफ्ट के लिए रिसाइकिल्ड पल्प के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के लिए कुछ हस्तक्षेप नहीं करती। इलमा के प्रेसिडेंट श्री विकास अग्रवाल का कहना है कि जब तक सरकारें चीन को क्राफ्ट पेपर के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने जैसे मजबूत उपाय नहीं करेंगी, तब तक लगता है कि अगले कुछ महीनों तक कीमतों में कोई राहत नहीं मिलेगी।

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