डेकोरेटिव लैमिनेट सेक्टर में अभी लाइनर लेमिनेट, थिन शीट, बैलेंसिंग शीट लेमिनेट का उत्पादन अपने निचले स्तर पर है। कच्चे माल की कीमतों में बढ़ोतरी ने लेमिनेट की कीमतों को इतना प्रभावित किया है कि कंपनियों ने अपने लाइनर ग्रेड का उत्पादन लगभग 50 फीसदी कम कर दिया है। लाइनर लेमिनेट, काफी संवेदनशील मेटेरियल होने और भारतीय बाजार में इसकी हिस्सेदारी लगभग आधा होने के कारण सप्लाई की बड़ी कमी है और इसकी कीमतें भी काफी अस्थिर है।
बाजार में थिन लेमिनेट शीट जो पिछले दिसंबर तक 240 से 265 रूपये तक बेच रही थीं, यह खबर लिखे जाने तक 350 से 380 रूपये पर भी उपलब्ध नहीं है। माल की कमी होलसेलर्स के लिए दूसरे सप्लाई और सेवा की दिक्क्तें पैदा कर रहा है। इसके विपरीत, इस बढे रेट पर भी शीट्स उपलब्ध नहीं है जिसके कारण लाइनर और थिन लेमिनेट शीट भारत के बाजार के लिए हॉट मेटेरियल बन गया है। क्राफ्ट पेपर, व्हाइट बेस, मेलामाइन और फिनोल में कीमतों में ढील का कोई संकेत नहीं है जो वर्तमान मांग-आपूर्ति की गड़बड़ी का मूल कारण है। कुछ आयातकों और निर्माताओं के अनुसार कच्चे माल की उपलब्धता और कीमतें मई के पहले सप्ताह तक अस्थिर रहने की उम्मीद है।
उत्तर भारत और गुजरात स्थित एचपीएल उत्पादकों के अनुसार, प्रचलित कीमतों पर लाइनर लेमिनेट्स मैन्युफैक्चरिंग अस्थिर हो गया है, इसलिए कई उत्पादकों ने लाइनर का उत्पादन आधा कर दिया है। मैन्युफक्चरर्स किसी भी कीमत पर लाइनर की सप्लाई नहीं कर रहे है। पूरे देश के ट्रेड सेगमेंट से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार वे अपने ब्रांड और फोल्डर की उपस्थिति को बनाए रखने के लिए अपने रेगुलर डिजाइन रेंज का उत्पादन कर रहे हैं। बढ़ी हुई कीमतों पर भी लाइनर उपलब्ध नहीं होना, बी 2 बी सेगमेंट में उथल पुथल पैदा कर रहा है और इसे बिखराव की ओर ले जा रहा है। प्लाई रिपोर्टर को प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार इसके चलते लेमिनेट गैलरीज और ट्रेडर्स के व्यापार और प्रतिष्ठा की हानि भी हो रही है।
ज्ञातव्य है कि लाइनर ग्रेड लेमिनेट भारत में एचपीएल मैन्युफैक्चरिंग कैपेसिटी ग्रोथ का एक महत्वपूर्ण ड्राइवर रहा है। कुल एचपीएल मैन्युफैक्चरिंग का लगभग 50 प्रतिशत हिस्सा 0.6 से 0.7 मिमी थिकनेस का होता है जिसे भारत में बैलेंसिंग या बैकर (पैनल के अंदर जहां डिजाइनर शीट चिपकाई जाती है) के रूप में उपयोग करने की सलाह दी जाती है।
एचपीएल में, क्राफ्ट पेपर और रेजिन लेमिनेट मैन्युफैक्चरिंग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मार्च में रिसाइकल्ड क्राफ्ट पेपर की कीमतें 25 फीसदी बढ़ी, जिसनंे इनपुट कॉस्ट सीधे 20 से 22 रुपये प्रति शीट बढ़ा दिया। यह भी बताया गया कि क्राफट पेपर की कीमतें अगस्त में 23 रूपए के आसपास थीं, जो आज 40 रूपए के पार पहुंच गई है। इसका मतलबहै कि पिछले 6 महीनों में लगभग 90 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है, जिससे कॉस्ट 70-80 रूपए प्रति शीट बढ़ी है।