सेंचुरी प्लाईबोर्ड्स इंडिया लिमिटेड, प्लाइवुड उद्योग के लिए वुड पैनल प्रोडक्ट की पूरी श्रृंखला जैसे प्लाइवुड, लेमिनेट, एमडीएफ, पार्टिकल बोर्ड, डेकोरेटिव विनियर और फेस विनियर के साथ भारत की सबसे बड़ी कंपनी है। सेंचुरी प्लाईबोर्ड्स ने 1984 में अपनी स्थापना के बाद एक लंबा सफर तय किया है। उनकी शुरुआत एक छोटी ट्रेडिंग फर्म से हुई, और आज एक बड़ी सफल कॉर्पोरेट कंपनी में तब्दील हो गई है। लोगों का कहना है कि ‘सेंचुरी प्लाई’ ब्रांड का उचाईयों पर पहुंचने में श्री सज्जन भजंका की ईमानदारी, कंसिस्टेंसी और दूरदर्शी नेतृत्व का महत्वपूर्ण योगदान है।
प्लाई रिपोर्टर ने श्री सज्जन भजंका से मुलाकात की और वुड पैनल उद्योग की वर्तमान स्थिति और उनके अनुसार भविष्य में होने वाले बदलावों पर उनके विचार जाने, प्रस्तुत है उनसे बातचीत के प्रमुख अंश।
लकड़ी के उद्योग में फारेस्ट लाइसेंस की जरूरत पर लंबे समय से बहस चल रही है। इसके बारे में अभी क्या क्या हो रहे है? थोड़े समय की बात है। एग्रो बेस्ड सभी पैनल फैक्ट्रियां आज ना कल लाइसेंस मुक्त हो जाएंगी। कई राज्यों जैसे आंध्र प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड आदि में यह पहले ही होना शुरू हो गया है। इन राज्यों ने सूचित कर दिया है कि उन्हें लाइसेंस की जरूरत नहीं है। मुझे विश्वास है कि जल्द ही सभी जगह ऐसा ही होगा, इसमें कोई समस्या नहीं है।
प्र. उत्तर प्रदेश के बारे में क्या कहना चाहेंगे?
यूपी ने भी इसे अधिसूचित किया है, लेकिन कुछ लोग उच्च न्यायालय चले गए, जिससे इस पर रोक लगा दी गई है। पर्यावरण मंत्रालय से जारी एक अधिसूचना पहले से ही लॉग की एक खास गोलाई तक लाइसेंस की कोई जरूरत नहीं है, इसके बारे में बताती है जिससे यह साबित होता है कि ‘लकड़ी के उद्योग के लिए लाइसेंस‘ की जरूरत नहीं है। इसी बीच, यूपी ने लकड़ी की उपलब्धता के आधार पर इसके उद्योग के लिए लाइसेंस जारी करने के लिए पंजीकरण प्रक्रिया शुरू की, जिसे बाद में एनजीटी में चुनौती दी गई। एनजीटी ने सरकारी वन और निजी प्लांटेशन वुड की उपलब्धता के संबंध में किए गए आकलन और गणना पर सवाल केवल इसलिए उठाया कि यूपी में आधार, टिम्बर की उपलब्धता और जो खपत था वो गलत था, इसके बजाय उन्हें यह कहना चाहिए था कि इसके लिए लाइसेंस की आवश्यकता केवल मेटेरियल के लिए है जो हम रिजर्व्ड फारेस्ट के लिए देते हैं। और, अगर आप प्लांटेशन टिम्बर का उपयोग कर रहे हैं तो किसी लाइसेंस की जरूरत नहीं है। सिर्फ पंजीकरण करना है इसलिए पंजीकरण का प्रारूप साझा किया जाना चाहिए था।
मैंने मुख्यमंत्री को भी पत्र लिखकर इस मामले को अधिसूचित करने का आग्रह किया है। इसके बाद ये सभी फैक्ट्रियां पंजीकरण कराकर काम शुरू कर सकते हैं।
प्र. आपको क्या लगता है, इस संबंध में आगे क्या होगा?
फिप्पी ने इस संबंध में मंत्रालय और नीति निर्धारकों से बात करने का प्रयास किया हैं। चूंकि मंत्रालय के पोर्टफोलियो में कुछ बदलाव हुए हैं, इसलिए तत्कालीन मंत्री को इस विषय पर फिर से विचार करना होगा। लाइसेंसिंग के विषय का निर्णय लंबित है लेकिन निश्चित रूप से इसे मंजूरी देने से पहले उन्हें इसे समझना चाहिए।
प्र. ऐसा लगता है कि यहां समानांतर काम चल रहे है। एक है एक्ट जबकि दूसरा यूपी सरकार की ओर से नोटिफिकेशन जारी करना।
पिछले मंत्री ने कहा है कि डीजी फारेस्ट ने मामले को सुना और सुझाव दिया था, उसके अनुसार अधिनियम की व्याख्या किया जाएगा। इसके अलावा, यह सुझाव भी दिया गया था कि उन्हें दोनों के साथ आगे बढ़ना चाहिए। 2018 के दिशानिर्देशों के बाद, अधिसूचित कर 2021 के नए दिशानिर्देशों को जारी करना और फिर अधिनियम का मसौदा तैयार करना। हमें उम्मीद है कि चीजें स्पष्ट होंगी और इस तरह से होंगी जैसा वास्तव में की जानी चाहिए। भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने और निर्यात को मजबूत करने के लिए सही दिशा में ऐसे नीतिगत फैसले देश और हमारी अर्थव्यवस्था के विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं।
भारत में, ज्यादातर लोग प्लाइवुड को एमडीएफ और पार्टिकल बोर्ड से ज्यादा पसंद करते हैं। इसलिए हाई ग्रेड प्लाइवुड की डिमांड रहने वाली है। दूसरे, भारत में रेडीमेड फर्नीचर का चलन अभी शुरू नहीं हुआ है और फर्नीचर में डिस्ट्रीब्यूशन मॉड्यूल पूरी तरह सक्षम नहीं है। शोरूम के माध्यम से बेचना व्यवहारिक नहीं है।
प्र. क्या इसका मतलब यह है कि राज्य सरकार इस दिशा में कुछ कदम उठाएगी? यूपी के लिए इस मुद्दे पर अधिसूचित करें और एक राष्ट्रव्यापी अधिनियम बनाएं?
कई तरह के दिशा निर्देश हैं जो इंडस्ट्री एक्सपर्ट के एक समूह द्वारा तैयार किया गया है जो सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर भी आधारित हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के जवाब में पर्यावरण मंत्रालय का 2017 के आसपास आया निर्देश एक जैसा था, जो प्लांटेशनटिम्बर के मामले में लकड़ी के उद्योग को लाइसेंस से मुक्त करने की दिशा में है। यदि राज्य सरकारें उस अधिसूचना पर गंभीरता से विचार करेंगी, तो यह पहले से ही उद्योग की वर्तमान जरूरत के अनुरूप ही है।
प्र. क्या निकट भविष्य में प्लाइवुड के निर्यात की कोई संभावना है?
अभी भारत व चीन के बराबर खड़ा है। चीन में लेबर कॉस्ट और कंटेनर का माल भाड़ा बहुत महंगा है। आज हमारे मुकाबले चीन में रेट ज्यादा हैं इसलिए भारत से प्लाइवुड निर्यात होने की संभावना काफी अच्छी है। रबड़ वुड से बनी सस्ती प्लाई पहले सेही केरल से निर्यात किया जा रहा है। और यदि लकड़ी उपलब्ध रहती है जो कि सीधे प्लांटेशन से जुड़ी है, तो प्लाइवुड का निर्यात करना बहुत संभव है। लाइसेंस फ्री वाली नीति किसानों को और अधिक लकड़ी का उत्पादन करने को प्रोत्साहित करेगी और सक्षम बनाएगी और यह भारत को दुनिया का एक स्थायी सप्लायर बनाने में सहायक होगा क्योंकि हम प्लांटेशन टिम्बर से प्लाइवुड बनाने में बहुत अच्छे हैं।
प्र. आने वाले कुछ वर्षों में आप प्लाइवुड की मांग को कैसे देखते हैं?
मुझे लगता है कि आने वाले दिनों में भारत में भी प्लाइवुड की कमी हो जाएगी। प्लाइवुड की मांग बढ़ने वाली है। हाऊसिंग सेक्टर पर बहुत अधिक दबाव बना हुआ है और आवास की इन्वेंटरी की जरूरत खतरनाक तरीके से बढ़ रही है। जैसा कि इन्वेंट्री तेजी से घट रही है, बिल्डर केटेगरी अधूरी परियोजनाओं को पूरा करने के लिए उत्सुक होगें, इसलिए मुझे मेटेरियल की डिमांड काफी तेजी से बढ़ता दिखाई दे रहा है क्योंकि रुके हुए कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट फिर से शुरू होंगे। अब हर स्तर पर विकास हो रहा है।
प्र. प्लाइवुड के वैकल्पिक उत्पाद के बारे में आपका क्या विचार है?
भारत में, ज्यादातर लोग प्लाइवुड को एमडीएफ और पार्टिकल बोर्ड े ज्यादा पसंद करते हैं। इसलिए हाई ग्रेड प्लाइवुड की डिमांड रहने वाली है। दूसरे, भारत में रेडीमेड फर्नीचर का चलन अभी शुरू नहीं हुआ है और फर्नीचर में डिस्ट्रीब्यूशन मॉड्यूल पूरी तरह सक्षम नहीं है। शोरूम के माध्यम से बेचना व्यवहारिक नहीं है। क्प्ल् (डू इट योरसेल्फ) और ऑनलाइन फर्नीचर बेचना अभी शुरूआती अवस्था में है। जैसे-जैसे इसकी मांग बढ़ेगी, इससे जुड़े कच्चे माल की मांग भी बढ़ेगी, जिसमें प्लाइवुड भी शामिल है। पतले प्लाइवुड की जगह पतले एमडीएफ का इस्तेमाल फर्नीचर पर किया जाएगा, जो वास्तव में प्लाइवुड सेगमेंट के लिए अच्छा ही होगा। रेडीमेड फर्नीचर में मुख्य रूप से पार्टिकल बोर्ड का उपयोग किया जाएगा।
प्र. उद्योग डेकोरेटिव विनियर केटेगरी में थिन एमडीएफ को बेस प्लाई के रूप में क्यों नहीं अपना रहा है?
जहां तक डेकोरेटिव विनियर की बात है तो एमडीएफ पर डेकोरेटिव विनियर लगाने में कुछ चुनौतियां हैं इसलिए इसके कॉन्सेप्ट में बदलाव करना होगा। मेरा मानना है कि इस दिशा में भी बदलाव हो रहा है।
प्र. सेंचुरी प्लाईबोर्ड्स की विस्तार योजनाएं क्या हैं?
हमारी दूसरी प्राथमिकता पार्टिकल बोर्ड्स के साथ अपने लैमिनेट और एमडीएफ सेगमेंट में क्षमता बढ़ाने की है। और अंत में हम प्लाइवुड की क्षमता बढ़ाएंगे। हमारी सभी कैपेसिटी लगभग 30000 एनए प्रति दिन हैं, कुछ कारखाने 40000 एनए भी कर रही हैं जबकि हमारा लक्ष्य उन्हें प्रतिदिन 50000 एनए तक ले जाना है।
प्र. सेंचुरी प्लाई क्वालिटी के मामले में किस प्रकार अलग है?
सेंचुरी प्लाईवुड हमेशा अत्यधिक संवेदनशील रहा है और गुणवत्ता में सुधार के लिए प्रयाशरत रहा है। आज हम कीटाणुओं को मारने के लिए तीन अलग-अलग प्रकार के केमिकल का उपयोग कर रहे हैं। इसे वायरस प्रतिरोधी बनाने के लिए हम नैनो पार्टिकल का इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा हम असली फायर रेजिस्टेंस प्लाई देने के लिए अलग-अलग केमिकल का उपयोग करते हैं, और अब हमने म्0 भी विकसित कर लिया है। इसलिए एक प्लाई में जरूरी सभी बेहतरीन विशेषताएँ सेंचुरीप्लाई में उपलब्ध हैं और इसे पूरी निगरानी में उपयोग किया जाता हैं ताकि उत्पाद का एक भी टुकड़ा ना बचे।
प्र. भारत में बर्च प्लाईवुड का आयात क्यों हो रहा है? क्या यह भारत में नहीं बनाया जा सकता?
भारत में बर्च का फेस पसंद नहीं किया जाता है। अगर सेंचुरी बर्च का कोर बनाने के लिए बर्च वुड का आयात करती है, तो इसके लिए सफेदा तुलनात्मक रूप से सस्ता है। यह फायर रेजिस्टेंस भी है, प्राकृतिक रूप से कीड़ों से बचाव करता है, ताकत के हिसाब से भी सफेदा बेहतर है। फिनिशिंग के लिए 3-स्टेज प्रेसिंग कॉन्सेप्ट है इसलिए इसे भी अपनाया जाता है, तो क्वालिटी अच्छी होती है।
प्र. फेस विनियर के बारे में आपकी क्या राय है? क्या आप दक्षिण में जितने अवसर है इसमें कोई सफलता देखते हैं?
फेस विनियर में, मुझे भारत में ज्यादा संभावनाएं नहीं दिख रही हैं। इसे आयात ही करना पड़ेगा, या तो गर्जन या ओकूमे।