कोविड के इस चुनौतीपूर्ण समय में सफलता पूर्वक वेबिनार आयोजित करने की श्रृंखला में, प्लाई रिपोर्टर ने फेस विनियरः रंग, बाजार और उभरती जरूरतें’ विषय पर 30 अगस्त, 2020 को एक और ई-कॉन्क्लेव का आयोजन किया। कॉन्क्लेव में फेस विनियर निर्माताओं व् व्यापारियों और तकनीकी विशेषज्ञ के साथ चर्चा की गई, जिनमें श्री सुदीप जैन, निदेशक, ग्रीनप्लाई गेबॉन एसए; श्री आलोक अग्रवाल, निदेशक, वुडलैंड गैबॉन एसआरएल और लैंडमार्क विनियर प्राइवेट लिमिटेड; श्री अमन गर्ग, निदेशक, एवरेस्ट प्लाई एंड विनियर प्राइवेट लिमिटेड; श्री अरविंदर सिंह, निदेशक, एम के इंटरप्राइजेज, लुधियाना; श्री संत क्वात्रा, निदेशक, त्रिमूर्ति विनियर, यमुनानगर; श्री अनूप अग्रवाल, निदेशक, गैबॉन टिम्बर इंडस्ट्री (मालचंद एंड संस ग्रुप); श्री विवेक अग्रवाल, निदेशक, टिम्बर वर्क्स, श्री राघव गोयल, प्रमोटर, गैबॉन विनियर एसआरएल और डॉ एस के नाथ, पूर्व संयुक्त निदेशक, इपिर्ति शामिल थे। श्री प्रगति द्विवेदी, संस्थापक, प्लाई रिपोर्टर और श्री राजीव पाराशर, संपादक, प्लाई रिपोर्टर ने चर्चा का संचालन किया।
इस ई-कॉन्क्लेव को गैबॉन रिपब्लिक, एएफसी और ओलम-सिंगापुर के जॉइंट वेंचर गैबॉन एसईजेड एसए द्वारा स्पांसर किया गया था। जीएसईजेड, नकोक (लिब्रेविल शहर से 27 किलोमीटर) मे 1,126 हेक्टेयर में फैला है। यह उप-सहारा अफ्रीका के सबसे बड़े औद्योगिक पार्क में से एक है, जो गेबाॅन के लकड़ी और अन्य प्राकृतिक संसाधनों के स्थायी उत्पादन व प्रसंस्करण पर केंद्रित है। पैनलिस्ट्स ने फेस विनियर की उपलब्धता, इसके टिकाऊपन, कीमत, उचित थिकनेस और प्लाइवुड उद्योग की उभरती जरूरतों से संबंधित कई मुद्दों और चुनौतियों पर चर्चा की और इसके संभावित उपायों पर विचार किया। चर्चा का प्रमुख अंश इस प्रकार हैं।
कोविड के बाद डिमांड एंड सप्लाई की स्थिति
श्री अमन गर्गः कोविड के पहले लोगों के पास काफी स्टॉक थे, जो मई-जून के महीने में धीरे-धीरे खाली हो रहे थे। गेबॉन से मॉल पहुंचने की ट्रांजिट टाइम 45 दिन था, जो अब बढ़ गया है क्योंकि गेबॉन में कंटेनरों की उपलब्धता की कमी है। हालाँकि, बाजार में वॉल्यूम के लिहाज से बर्मा से गर्जन की आपूर्ति अच्छी है, लेकिन कीमत के लिहाज से ओकूमे फेस विनियर की मांग बढ़ रही है।
श्री आलोक अग्रवालः अनलॉक के बाद जब से, भारत में उद्योग में तेजी आई है, तो एक महीने बाद, फेस विनियर की मांग अचानक बढ़ी है और विनियर का स्टॉक तेजी से खाली हो रहा है। यह भी सच है कि बर्मा से ट्रांजिट टाइम कम है, लेकिन बात यह है कि वे लकड़ी पुरानी है, फिर भी हम प्री-कोविड स्तरकी तुलना में 75 फीसदी बिक्री हासिल करने में कामयाब रहे।
श्री सुदीप जैनः गेबॉन में, पिछले चार महीनों से लकड़ी की कीमत नहीं बढ़ी है और खपत पहले की कुल खपत का 35 फीसदी है। जून तक लकड़ी की आपूर्ति 25 फीसदी थी जो जुलाई से बढनी शुरू हुई। इसलिए, कीमतों में वृद्धि यूरो की बढ़ती एक्सचेंज रेट के कारण है जो 7 से 8 फीसदी के करीब है। गेबॉन में सभी कारखानों ने अब उत्पादन शुरू कर दिया है।
गर्जन बनाम ओकूमे फेस विनियर
श्री सुदीप जैनः प्लाइवुड निर्माताओं में रंग को लेकर अभी भी काफी लगाव है। कीमत भी प्रमुखता से ध्यान दिया जाता है, क्योंकि वर्तमान में वे कम कीमतों पर गर्जन का उपयोग कर रहे हैं। बर्मा और गेबॉन से ट्रांजिट टाइम क्रमशः 40 व् 90 दिन हैं। लेकिन, जब सब कुछ सामान्य होगा, गर्जन की तुलना में ओकूमे की सप्लाई ज्यादा होगी।
श्री संत क्वात्राः ओकूमे की कम कीमत के कारण लोग इसे गर्जन के बदले अपना रहे थे और स्वीकार्यता तेजी से बढ़ रही थी। आज प्राइस फैक्टर उल्टा है और गर्जन की कीमत में हर जगह कमी आई है। मेरी राय में, गर्जन हमेशा पहली पसंद होगी। गर्जन की कीमत कम होती जा रही है क्योंकि डिमांड सप्लाई असंतुलन के साथ विशेष रूप से डी1 और डी2 मेटेरियल खराब हो रही है। ओकूमे की स्वीकार्यता कम कीमतों के कारण थी। मेरी राय में, गर्जन की मांग स्थानीय स्तर पर उपलब्ध अन्य प्रजातियों जैसे मकाई, होलाॅंग इत्यादि के अलावा 65 फीसदी रहेगी, अगर गर्जन की कीमत बढ़ती है तो लोग फिर से ओकूमे में शिफ्ट हो जाएंगे।
श्री आलोक अग्रवालः इंडोनेशिया और बर्मा मिलकर भी 300 कंटेनरों की आपूर्ति कर सकते। इंडोनेशिया में लॉगर्स नुकसान उठा रहे हैं और यह उनके लिए सस्टेनबल नहीं है। अगर मांग बढ़ती है तो गर्जन की कीमत बढ़ानी पड़ेगी। आज डी1 और डी2 काफी मात्रा में हैं और खराब हो रहे हैं, इसलिए वे सिर्फ बेचने के लिए बेच रहे हैं क्योंकि जैसे जैसे समय बीतता है इसमें तेल छूटने लगता है, लेकिन ओकूमे के साथ ऐसा नहीं है।
श्री राघव गोयलः ओकूमे भारत के लिए एक वरदान साबित हुआ है। आज प्लाइवुड की कीमत सभी प्लाइवुड निर्माता के नियंत्रण है क्योंकि ओकूमें बाजार में उपलब्ध है। इसकी कमी से, गर्जन की कीमत बढ़ जाएगी और फिर लोग ओकूमे में शिफ्ट हो जाएंगे। गर्जन में प्लाइवुड बनाने वाले धीरे-धीरे ओकूमे में स्थानांतरित हो जाएंगे।
श्री अमन गर्गः फिलहाल कीमतें स्थिर रहेंगी; जैसे-जैसे मांग बढ़ेगी, लॉगर्स भी दाम बढ़ाएंगे। तो, मांग और आपूर्ति विदेशी मुद्रा की कीमतें और साथ ही मेटेरियल की कीमत को भी नियंत्रित करेगी।
श्री अनूप अग्रवालः इंडोनेशिया की कीमत का ओकूमे की सप्लाई/डिमांड से कोई सरोकार नहीं है, क्योंकि यह क्षेत्र पूरी तरह से अलग है और हमारे ग्राहक 100 फीसदी ओकूमे पर निर्भर हैं।
श्री सुदीप जैनः फिलीपींस, मलेशिया, और इंडोनेशिया जैसे कई देश अभी भी लॉकडाउन में हैं, जब कोविड की हालत में सुधार होगा तो इन देशों में मांग बढ़ेगी और भारतीय बाजार में आपूर्ति अपने आप कम हो जाएगी, इसीलिए इसकी कीमत में वृद्धि तो निश्चित है। एक साल पहले, वे ओकूमे फेस विनियर का भी आयात कर रहे थे।
श्री विवेक अग्रवालः यह सही है कि हर जगह कोविड के कारण फेस विनियर की मांग कम है। फेस और प्लाइवुड के मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स एक दुसरे पर निर्भर हैं। यदि प्लाईवुड निर्माता प्राइस पॉइंट को आगे बढ़ाते हैं, तो क्वालिटी कॉम्प्रमाइज हो जाएगी। इसलिए, कीमत के एक विशेष स्तर से आगे निर्माता नहीं जा पाएंगे, चाहे वह इंडोनेशिया हो, बर्मा हो या गेबॉन।
फेस विनियर की कीमते
श्री अरविंदर सिंहः उद्योग में उम्मीद से बेहतर सुधार हो रहा है, क्योंकि जब बाजार में तरलता बढ़ती है, तो उत्पादन भी बढ़ता है, इसी के साथ फेस विनियर की मांग भी बढ़ जाती है। फिर भी हम उम्मीद करते हैं कि, कोविड के पहले वाली स्थिति में आने में कम से कम एक वर्ष लगेगा। वर्तमान में हम 60/65 फीसदी पर हैं।
श्री अनूप अगवालः यदि हम ग्राहकों को केरूइंग और ओकूमे के बारे में अलग अलग बताते है, तो वे 17 में ओकूमे के बजाय 32 में केरूयिंग के लिए पूछते हैं। यह सच नहीं है कि केरूइंग की कीमत के कारण निर्माताओं की लाभप्रदता अधिक है। हमारे प्रेस में, 5 फीसदी लोग केरूइंग और 95 फीसदी ओकूमे के लिए पूछते हैं, क्योंकि इसकी सतह चिकनी होती है और तेल छोड़ने की कोई समस्या नहीं है। हम जब इसका उपयोग कर रहे थे, तो केवल तीन महीनों में स्टॉक में तेल की समस्या पैदा हो जाती थी। यहां तक कि डिलीवरी के समय भी यह सबसे प्रमुख मुद्दा था। उसके कारण क्वालिटी खराब होती है। श्री अमन गगर्ः बड़े ब्रांडों में गर्जन के प्रति आकर्षण कम है। लेकिन, मेडियम सेगमेंट में गर्जन की मान्य श्रेष्ठता के आधार पर तुलना करने का चलन है, क्यांेकि इससे कीमत में 5 रुपये का फायदा मिल जाता है। लेकिन, क्1 और क्2 के 100 फीसदी बाजार, ओकूमे फेस विनियर ने अपना लिया है।
श्री संत क्वात्राः कई प्रमुख कंपनियां गर्जन के स्थान पर ओकूमे को बढ़ावा देते है और उत्पाद की कीमत कम किए बिना फायदा उठाया है। उनकी स्वीकार्यता वहां होगी क्योंकि उन्होंने बाजार निर्धारित किए हैं। लेकिन यूपी, यमुनानगर और पंजाब के बाजार में, गर्जन और ओकूमे के बीच कम से कम 2 रुपये का अंतर है। फेस विनियर उद्योग बहुत हद तक व्यापारियों पर निर्भर था, लेकिन ओकूमे आज डायरेक्ट सेलिंग पर है। यदि वे व्यापारी के माध्यम से पेश करते और कीमतें समान रहती, तो व्यापारी ओकूमे को ही बढ़ावा देंगे।
श्री प्रगत द्विवेदीः तो, यह स्पष्ट है कि कीमतें ही ड्राइविंग फैक्टर है, लेकिन क्वालिटी के स्थान पर यह प्रभावी नहीं होगा। यदि कोई क्वालिटी और अच्छी थिकनेस चाहता है तो वह कलर पर ध्यान नहीं देगा और ओकूमे को ही पसंद करेगा, यही कारण है कि लोग आज ओकूमे को अपना रहे है।
श्री अमित अग्रवाल (प्रीमियम प्लाइवुड)ः आज, ओकूमे को बाजार में स्वीकार कर लिया है। रंग कोई मुद्दा नहीं था इसलिए लोगों ने ओकूमे को स्वीकार कर लिया। बाजार में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के साथ, दोनों प्रोडक्ट्स की स्वीकार्यता और महत्व रहेगी।
श्री राघव गोयलः यह सच नहीं है कि गैबॉन ने अपनी सभी फैक्ट्रयों में 0.25 मिमी की मैन्युफैक्चरिंग शुरू की है। इसका उत्पादन विशेष परिस्थितियों में किया जाता है, जब कुछ व्यापारी इसके लिए पूछते हैं। लेकिन, ज्यादातर 0.3 मिमी ही बना रहे हैं, क्योंकि गेबॉन में सभी फैसिलिटी को अन्य देशों के साथ-साथ संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप, दक्षिण पूर्व एशिया आदि में निर्यात करने का विकल्प है।
भारतीय उपभोक्ताओं के लिए महत्वपूर्ण बात यह है कि वे 100 फीसदी कानूनी और सस्टेनबल फेस विनियर खरीद रहे हैं। गेबॉन से आने वाले सभी लॉग 100 फीसदी कानूनी हैं, जो कि मणिपुर या इंडोनेशिया से खरीदते समय नहीं हो सकता। लोगों में जागरूकता की कमी है, इसलिए भी वे कानूनी मुद्दों के बारे में नहीं सोचते हैं। कीमतों की स्थिरता एक चीज है लेकिन, यह न तो गर्जन और न ही ओकूमे की स्थिर है। अभी कोरोना के प्रभाव के कारण गर्जन सस्ता मिल रहा है। गेबॉन में लेवर की भी दिक्क्तें हैं, लेकिन जैसे ही लॉकडाउन खत्म हो जाएगा, वे अपने अपने कारखानों में वापस आएंगे और फिर से कीमतें बढेगी।
फेस विनियर की थिकनेस की उपयुक्तता
श्री आलोक अग्रवालः गर्जन की मोटाई में कमी 2018 में शुरू हुई जब यह 0.28 मिमी तक नीचे चला गया था और यह एक विफलता थी, लेकिन 2019 के बाद थिकनेस सभी जगह बढ़ गया चाहे वह बर्मा हो या इंडोनेशिया। ओकूमे के साथ भी ऐसा ही होगा; थोड़े समय की बात है। हम अंडर थिकनेस वाले फेस विनियर से प्लाइवुड नहीं बना सकते। कम मोटाई के साथ, फेस प्रभावित होती है, लेकिन व्यावहारिक रूप से 0.25 मिमी के लिए, प्लाइवुड की कीमत में अंतर सिर्फ 25 पैसे/वर्गफुट ही है। चीन डंपिंग ग्राउंड के रूप में भारत में 0.25 मिमी को बढ़ावा दे रहा है।
डॉ एस के नाथः जहां तक प्लाइवुड के फेस की मोटाई का सवाल है, जो भी गुणवत्ता हो, चाहे वह होलॅाग, गर्जन हो या करूइंग हो, पूरी गतिविधि कीमतों पर निर्भर करती है। फेस की मोटाई 1.2 एमएम से शुरू होकर अब 0.3 मिमी तक कितने ही थिकनेस से गुजरी, और कमर्शियल प्लाइवुड बनाने के लिए तो कभी-कभी 0.25 भी उपयोग किया जाता है। यदि हम प्लाइवुड की गुणवत्ता को देखें, तो प्लाइवुड के दो अलग-अलग चरण फेस विनियर पर निर्भर करते हैं; फेस/कोर विनियर और बॉन्डिंग स्ट्रेंथ के साथ ग्लू शियर स्ट्रेंथ। यदि फेस विनियर 1 मिमी (विशेष रूप से 0.6 मिमी से नीचे आने पर) से कम है, तो विनियर के आधार पर प्लाइवुड की वास्तविक ताकत 33 फीसदी कम हो जाती है (यह बीआईएस मानक और इपिर्ति द्वारा अध्ययन किए गए वास्तविक डेटा के संदर्भ में है) और उपयोग करने के दौरान भी बॉन्डिंग स्ट्रेंथ भी होलाॅग फेस (भारत में अब तक उपलब्ध सबसे अच्छा) 20 से 25 फीसदी तक नीचे चला जाता है।
भारत में प्लाइवुड उद्योग के पिछले 75 वर्षों के इतिहास में,n सभी ने ग्राहकों को अच्छे दिखने वाले फेस से बहलाया हैं। यह जरूरी नहीं है, लेकिन लोगों का कहना है प्लाइवुड चाहे कोई भी ग्रेड, या नाम का हो, फेस अच्छा होना चाहिए। कमर्शियल प्लाइवुड में, जबकि सामान्य उपयोग है फिर भी मोटा फेसहोना चाहिए। स्ट्रक्चरल प्लाईवुड में, हम 1 मिमी से कम मोटाई का उपयोग नहीं कर सकते। इसलिए, केवल अच्छा दिखना आवश्यक नहीं है। क्या फर्नीचर निर्माता 0.3 मिमी या किसी अन्य थिकनेस के फेस के लिए पूछते हैं या यह पूछते है कि थिकनेस समान होना चाहिए? इसलिए, वैसा उत्पाद बनाएं जो वास्तव में ग्राहक मांग करते हैं। होता क्या है कि एक सामान्य ग्राहक रंग और संरचना से आकर्षित हो जाता है।
श्री संत क्वात्राः जब हम 0.5 मिमी फेस विनियर का उपयोग कर रहे थे, बीआईएस हमें प्रमाणित कर रहा था। क्या यह आज भी संभव है जब हम 0.3 मिमी तक पहुंच गए हैं? उद्योग इसे 0.2 मिमी से नीचे लाने के बारे में भी सोच रहा है। हम कहां सरवाइव करेंगे क्योंकि गर्जन के पास 6 ग्रेड हैं और ओकूमे में सी-डी और डी2 हैं। कीमतों के कारण वे गर्जन के साथ एडजस्ट करने के लिए 0.25 मिमी कम हो गए।
लोगों में भी अक्सर फेस की मोटाई कम करके कीमत कम करने का चलन है। मेरे अवलोकन में विदेशी बाजारों के कई देशों में, कहीं तो फेस का उपयोग ही नहीं है और कुछ केवल एक तरफ ही उपयोग कर रहे हैं, इसलिए फेस के बिना प्लाइवुड के गुणों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। जब हम डी3 फेस का उपयोग करते हैं तो भी प्लाइवुड की प्रॉपर्टी समान रहती है, लेकिन भारतीय बाजार ऐसा है कि वे ए-ग्रेड के फेस मांगते हैं।
श्री अमन गगर्ः गेबाॅन से चीनी कारखानों के हस्तक्षेप से भारतीय बाजार पर बड़ा दबाव है क्योंकि वे अथक रूप से 0.25 मिमी सप्लाई करने की कोशिश कर रहे हैं।
श्री विवेक अग्रवालः गेबॉन में अधिक उत्पादन के कारण प्रेसर सेलिंग हुई और थिकनेस को 0.25 मिमी तक कम करके, यह इस सेगमेंट के प्लाइवुड को स्थिरता नहीं दे रहा है।
श्री सुदीप जैनः 0.25 मिमी आएंगे और वापस जाएंगे लेकिन हमें इसे रोकने की कोशिश भी करनी चाहिए क्योंकि ऐसे कई निर्माता हैं जो चीन से खरीदना नहीं छोड़ सकते। जब हम इन बाजारों में जाते हैं, तो हमें सस्ती कीमत के साथ उनसे मुकाबला करना पड़ता है।
श्री राघव गोयलः 0.25 मिमी के लिए, प्लाइवुड निर्माताओं पर दबाव डाला जा रहा है। भले ही, मांग नहीं है, लेकिन केवल व्यापारियों के लिए यह किया जा रहा है, यही कारण है कि गेबाॅन के निर्माताओं ने व्यापारियों को बाइ-पास किया है और सीधे कारखानों को देना शुरू कर दिया है। यदि भारत को यूरोपीय और अमेरिकी बाजार के लिए निर्यात करना है, तो ओकूमे सही मायने में सस्टेनेबल ऑप्शन है, क्योंकि यह एक लीगल फेस विनियर है। ये देश फेस की वैधता को लेकर अत्याधिक संवेदनशील हैं।
श्री अरविंदर सिंहः हम रिकॉन को इसमें शामिल करने के बारेn में क्यों नहीं सोचते हैं? यह मेक इन इंडिया को भी बढ़ावा देगा और चीन पर हमारी निर्भरता से बचने में मदद करेगा। दूसरा, थिकनेस का मसला ही हल हो जाएगा। इससे स्थानीय लकड़ी का उपयोग भी किया जा सकेगा, जरूरत का थिकनेस और कीमत भी मिलेगी। जब ओकूमे आया, तो उन्हें भी विरोध का सामना करना पड़ा था, लेकिन धीरे-धीरे स्वीकार्यता मिल गई, इसलिए यह रिकॉन विनियर के साथ भी संभव हो सकता है।
पैनेलिस्ट का निष्कर्ष
श्री सुदीप जैनः ओकूमे टिकाऊ है और सरकार की नीतियां इसकी स्थिरता का समर्थन करती हैं। अगर हम अंतर्राष्ट्रीय बाजार में काम करना चाहते हैं तो स्थिरता बहुत बड़ी भूमिका निभाएगा। देश में जागरूकता बढ़ा रही हैं, इसलिए स्थायी उपलब्धता के लिए ओकूमे फेस विनियर ही विकल्प है।
श्री आलोक अग्रवालः टिम्बर की उपलब्धता बहुत महत्वपूर्ण है और गेबॉन अच्छी कीमत पर लीगल लकड़ी उपलब्ध करता रहेगा, इसलिए भविष्य केवल ओकूमे में ही निहित है। गर्जन रहेगा, लेकिन ओकूमे निश्चित रूप से बेहतर शेयर हासिल करेगा।
श्री राघव गोयलः दुनिया भर में जब भी और जहां भी लकड़ी दुर्लभ होती है, सरकार की नीतियां आगे आ जाती है। यह बर्मा, लाओस और इंडोनेशिया में लॉगिंग के साथ हुआ। ओकूमे एकमात्र विकल्प है, जहां कच्चा माल निरंतर रुप से उपलब्ध है। सभी भारतीय मैन्युफैक्चरर्स में सभी का उत्पादन 30 से ४० फीसदी तक ओकूमे में स्थानांतरित किया जाना चाहिए। अगर कल किसी भी तरह से, गर्जन की सप्लाई बंद हो जाती है, तो बाजार का क्या होगा? इसलिए, सभी का ओकूमे के आधार पर अपने बाजार में एक सेटअप होना चाहिए।
श्री अनूप अग्रवालः भविष्य केवल ओकूमे में है और मैं सभी व्यापारियों से अनुरोध करता हूं कि वे चीनी कारखानों से खरीदना बंद करें और भारतीयों का समर्थन करें।
श्री अमन गगर्ः उद्योग को समान रूप से आगे बढ़ना चाहिए, अन्यथा व्यापार में असंतुलन हो जाएगा और अनुपस्थिति में दूसरे की कीमत बढ़ जाएगी।
श्री विवेक अग्रवालः सतत, नियमित और बल्क सप्लाई सिर्फ गेबॉन से ही संभव है। गेबॉन एसईजेड का प्रयास काफी सराहनीय है। चार साल की छोटी अवधि में, उन्होंने जो कुछ बनाया है वह अविश्वसनीय है। यह देश की आत्मनिर्भरता के मिशन की दिशा में भी है क्योंकि दूसरे देश में भारतीय ने हमारे उद्योग को स्थापित करने का एक बहुत अच्छा मंच तैयार किया है। उद्योग की स्थिति स्वयं उद्योग पर निर्भर करती है, यदि वे थिकनेस कम करने पर जोर देते है तो यह वर्तमान में 0.28 मिमी से भी 0.20 मिमी तक जा सकता है। अंततः, कीमत और क्वालिटी को साथ काम करना होता है। यह प्लाइवुड उद्योग पर ही निर्भर करता है कि वे किस तरह संतुलन बनाते हैं। श्री अरविंदर सिंहः लुक-वाइज गर्जन, ओकूमे से बेहतर है, इसलिए जब तक गर्जन की कीमत सस्ती और वर्तमान स्तर पर स्थिर रहेगी, तब तक यह चलेगा। एक निर्माता के रूप में, मेरा कहना है कि ओकूमे सभी समस्याओं का जवाब है।
श्री संत क्वात्राः ओकूमे की मांग हमेशा रहेगी और इसकी मौजूदगी के कारण, गर्जन की कीमत नियंत्रित और स्थिर रहेगी।
डॉ एस के नाथः फेस विनियर का थीकनेस, हम वापस नहीं ले सकते, लेकिन उभरते हुए रिकॉन विनियर उद्योग के लिए अतिरिक्त फायदेमंद होगा। बीआईएस के साथ, मैं ग्रीनप्लाई की ओर से वर्तमान में जो कुछ भी कर रहा हूं, वह इपिर्ति के समर्थन में वास्तविक मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिसेज और मानकों का अध्ययन करना है। दूसरा, सभी भारतीय लकड़ी, प्लांटेशन (टीओएफ), और प्लाईवुड का उपयोग करके, ग्राहकों की आवश्यकता को पूरा करते हुए, बीआईएस द्वारा भी पारित किया जा सकता है। इसका संशोधित रूप बहुत जल्द सामने आ जाएगा। कारखानों में एक तकनीक विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं, उम्मीद है कि यह सफल होगा।
श्री राजीव पाराशरः जैसे ही अंतर्राष्ट्रीय नीति में बदलाव होता है, उद्योग में भी परिवर्तन होता है, हमने बर्मा और लाओस में इसे देखा है। हम उम्मीद करते हैं कि गेबॉन में नीतिगत समर्थन जारी रहेगा और हम सतत रूप से वहां से टिम्बर प्राप्त कर सकेंगे। इस वेबिनार को व्यवस्थित तरीके से आयोजित करने के लिए उनके समर्थन के लिए प्लाई रिपोर्टर धन्यवाद देता है। भारतीयों ने बड़ी मात्रा में गेबॉन में निवेश किया और लॉजिस्टिक की अच्छी उपलब्धता के साथ वहां से निरंतर सप्लाई जारी रखना, घरेलू उद्योग को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उत्पादों की आपूर्ति और उत्पादों का अच्छा वातावरण प्रदान करने में मदद करके निवेश को सही साबित करना होगा।
प्लाई रिपोर्टर - निष्कर्ष
बिक्री के लिए मूल्य मायने रखता है और यह एकमात्र ऐसा कारक है, जो फेस विनियर के रंग और उभरती जरूरतों को पीछे रखता है, क्योंकि भारतीय व्यापारी कीमत पर ही टिके रहना चाहते हैं। यदि प्लाइवुड खरीदार/व्यापारी क्वालिटी पर थोड़ा सा भी ध्यान देना शुरू कर दे, तो न केवल क्वालिटी में सुधार होगा, बल्कि उत्पाद पर ग्राहकों का भरोसा भी बढ़ेगा। पिछले कुछ वर्षों से, कुछ हद तक प्लाइवुड की क्वालिटी घटने के कारण एमडीएफ और पार्टिकल बोर्ड का उपयोग बढ़ रहा है। प्लाइवुड की क्वालिटी इस हद तक कम हो गई है कि एमडीएफ केटेगरी के कुछ लोग दावा करने लगे है कि वे प्लाइवुड से बेहतर हैं और आने वाले समय में भी आगे रहेंगे, क्योंकि उत्पाद का सस्ता होना महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
आज के वेबिनार में यह स्पष्ट है कि कीमतों से ही सब कुछ तय होता है, इसलिए प्लाइवुड व्यापारियों को निर्माताओं से क्वालिटी की मांग करनी चाहिए, अन्यथा प्लाइवुड खुद ही एक सवाल बन कर रह जाएगा। दूसरा संकेत मिलता है कि ओकूमे हो या गर्जन, गर्जन का खरीदार हमेशा रहेगा। बाजार का अध्ययन यह भी कहता है कि कुछ खास खरीदार और विक्रेता हैं, जिनका गर्जन से काफी लगाव हैं। ग्राहकों में गर्जन के बारे में पूछने की आदत है, इसलिए यह सभी से महंगा है। लेकिन, यह तब तक ही प्रासंगिक रहेगा, जब तक चलन में है।
पैनलिस्ट इस बात पर सहमत थे कि आज, गर्जन को लोग अफोर्ड कर रहे है क्योंकि ओकूमे है और इसके होने से गर्जन सस्ती है। आने वाले समय में, जब भी हम गुणवत्ता के बारे में बात करेंगे, तो हाई थिकनेस वाले फेस विनियर का उपयोग करेंगे। यह भी स्पष्ट है कि अगर गर्जन फेस विनियर की बिक्री उसी स्तर पर जारी रहती है, जहां आज है, तो गर्जन की बिक्री लंबे समय तक जारी रहेगी, लेकिन यह भी स्पष्ट है कि कोविड का टीका उपलब्ध होने की संभावना के साथ, फेस विनियर की मांग दूसरे देश में बढ़ेगा, तब देश में गर्जन की उपलब्धता घटेगी और ओकूमे की मांग एक बार फिर बढ़ेगी।
यह स्पष्ट है कि कीमतों से ही सब कुछ तय होता है, इसलिए प्लाइवुड व्यापारियों को निर्माताओं से क्वालिटी की मांग करनी चाहिए, अन्यथा प्लाइवुड खुद ही एक सवाल बन कर रह जाएगा। दूसरा संकेत मिलता है कि ओकूमे हो या गर्जन, गर्जन का खरीदार हमेशा रहेगा। बाजार का अध्ययन यह भी कहता है कि कुछ खास खरीदार और विक्रेता हैं, जिनका गर्जन से काफी लगाव हैं। ग्राहकों में गर्जन के बारे में पूछने की आदत है, इसलिए यह सभी से महंगा है।
अब रंग का कोई महत्व नहीं है, इसलिए इस पर दांव न लगाएं। उभरती हुई जरूरतों के हिसाब से को थिकनेस और क्वालिटी को बढ़ावा देना है अन्यथा निरंतर उपलब्ध विकल्पों के साथ-साथ व्यापार निर्माताओं को भी नष्ट कर देगा। स्थिरता, कृषि वानिकी और घरेलू उत्पादों का उपयोग वर्तमान संदर्भ में बहुत महत्वपूर्ण हैं। इसे भारत में या गेबॉन में खरीदा जा सकता है, लेकिन भारतीय निर्मित से और अच्छी गुणवत्ता वाले उत्पाद खरीदें।
चर्चा का एक अन्य बिंदु यह था कि निर्माताओं और पीलिंग यूनिट्स को लकड़ी की स्वदेशी प्रजातियों जैसे लम्बू, पोपलर, मेलिया दुबिया और नीलगिरी का उपयोग करना चाहिए और फेस विनियर के उद्देश्य के लिए रिकॉन विनियर का उत्पादन करना चाहिए।