भारतीय वुड पैनल और फर्नीचर सेक्टर में काफी संभावनाएं हैं, अगर सरकारी नीतियां साथ दें! IWST और ICFRE द्वारा आयोजित एक सेमिनार में विशेषज्ञों ने कहा

person access_time   3 Min Read 09 July 2021

भारत सरकार की एक पहल ‘‘आजादी का अमृत महोत्सव, के अंतर्गत वुड कम्पोजिट्स पर एक शैक्षिक संगोष्ठी का आयोजन 11 जून 2021 को इंस्टीट्यूट ऑफ वुड साइंस एंड टेक्नोलॉजी IWST, बैंगलोर और इंडियन काउंसिल ऑफ फॉरेस्ट्री रिसर्च एंड एजुकेशन ICFRE द्वारा नॉलेज और मीडिया पार्टनर के रूप में प्लाई रिपोर्टर व सर्फेस रिपोर्टर मैगजीन के सहयोग से किया गया। कार्यक्रम का प्लाई रिपोर्टर फेसबुक पेज पर सीधा प्रसारण किया गया ाा, जिसे पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय MoF&CC, भारत सरकार द्वारा सहयोग प्रदान किया गया। महोत्सव भारत की आजादी के 75 साल के अवसर पर मनाया जा रहा है जो 12 मार्च 2021 से शुरू होकर 75 सप्ताह से अधिक समय तक 15 अगस्त 2022 तक जारी रहेगा। कार्यक्रम में वुड पैनल सेक्टर के प्रतिनिधियों ने अपने उद्योग से संबंधित कुछ दिलचस्प रिपोर्ट प्रस्तुत किए। कुछ प्रेजेंटेशन और भाषणों का संपादित अंश इस प्रकार है...

श्री सज्जन भजनका, अध्यक्ष, फेडरेशन ऑफ इंडियन प्लाईवुड - पैनल इंडस्ट्री (फिप्पी)

अंतर्राष्ट्रीय स्थिति की तुलना में और विशेष रूप से चीन के संदर्भ में भारत में लकड़ी आधारित उद्योग में, वर्तमान परिदृश्य यह है कि पिछले पांच वर्षों में उद्योग का आकार और इसकी कार्यप्रणाली तेजी से बदली है। पांच साल पहले, 3300 इकाइयों में से 2500 को टैक्स पर पूरी तरह से छूट दी जाती थी, 700 को आंशिक रूप से छूट दी जाती थी और केवल 100 इकाइयों को ड्यूटी देना पड़ता था। जीएसटी लागू होने के बाद सत प्रतिशत उद्योग ड्यूटी देने वाला सेक्टर बन गया है। इसलिए, एक तरफ इसने छोटे और बड़े सभी के लिए एक लेवल प्लेयिंग फिल्ड तैयार किया, तो दूसरी ओर छोटी इकाइयों को कुछ नुकसान हुआ। पर छोटे उद्योग जिन्हें उनके लघु उद्योग होने के कारण इंसेंटिव दिया जाता था, यह फायदा नहीं मिल पाता है। लेकिन, शुरुआती उथल-पुथल का सामना करते हुए अब छोटे पैमाने पर भी काफी सुविधाएँ उपलब्ध हैं और यह फिर से विकास की राह पर है।

यदि चीन को देखें तो वहां भारत के 1.25 मिलियन सीबीएम के मुकाबले पार्टिकल बोर्ड का उत्पादन लगभग 35 मिलियन सीबीएम है। हमारे 1.5 मिलियन सीबीएम के मुकाबले एमडीएफ 50 मिलियन सीबीएम है और हमारे 10 मिलियन सीबीएम के मुकाबले प्लाइवुड लगभग 200 मिलियन सीबीएम है। हमें लंबी दूरी तय करनी है, और मैं बहुत आशान्वित हूं कि अगले 10 वर्षों में हम तेजी से विकास करेंगे, क्योंकि 1990 के दशक की शुरुआत में चीन ने हाउसिंग डेवलपमेंट की शुरुआत की और गति इतनी तेज थी कि दुनिया भर से, जैसे अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया आदि से पैनल प्रोडक्ट चीन आ रहे थे। उस समय चीन का अपना उत्पादन बहुत कम था। उसके बाद उन्होंने अपने स्वयं के उद्योग के सहयोग े प्लांटेशन पर ध्यान दिया और अब चीन दुनिया में लगभग 60 फीसदी हिस्सेदारी के साथ सबसे आगे है, एमडीएफ 50 फीसदी है और पार्टिकल बोर्ड में चीन की हिस्सेदारी लगभग 25 फीसदी है। इसलिए, हम आज सही स्थिति में हैं क्योंकि भारतीयों की आय बढ़ रही है। लोग निम्न आय से मध्यम आय की ओर बढ़ रहे हैं और वे संभावित ग्राहक भी हैं। उनका अगला सपना अपना खुद का घर बनाना है और इसके लिए निश्चित रूप से फर्नीचर की जरूरत है। मैं फर्नीचर उद्योग का काफी तेज ग्रोथ देख रहा हूं। इसके बहुत सारे कारण हैं, हमारे अपने बाजार के कारण भारत का फर्नीचर काफी प्रतिस्पर्धी होगा, क्योंकि बहुत सस्ते लेवर की उपलब्धता (चीन और भारत में लागत का अंतर छह से सात गुना है) इसलिए चीन को इस मुददे पर नुकसान होंगे। अब महामारी के कारण अंतरराष्ट्रीय शिपिंग उद्योग में उथल-पुथल है, कंटेनर उपलब्ध नहीं हैं, समुद्री माल भाड़ा आसमान छू रहा है, यह भारतीय फर्नीचर उद्योग को एक और प्रतिस्पर्धात्मक फायदा पहुंचा रहा है। फर्नीचरऔर पैनल उद्योग आपस में जुड़ा हैं क्योंकि फर्नीचर की रीढ़ पैनल ही है चाहे वह प्री लेमिनेटेड पार्टिकल बोर्ड हो, प्री लैमिनेटेड एमडीएफ या प्लाईवुड हो। जो लोग कारखाने से बने फर्नीचर नहीं चाहते हैं, वे टेलर-मेड फर्नीचर खरीदते हैं और हमारे पास भारत में बहुत सारे कारपेंटर भी हैं, इसलिए प्लाइवुड का भी भविष्य अच्छा है और ग्रोथ जारी रहने वाली है।

कृषि वानिकी का विकास न केवल हमारे उद्योग के लिए बल्कि पूरे देश के लिए अच्छा है। हम जानते हैं कि हमारे पास कैश क्रॉप सरप्लस है, एफसीआई गोदाम भरे हुए हैं, और कभी-कभी वे भंडारण व्यवस्था की कमी के कारण खाद्यान्न को नष्ट करते हैं। अधिक सप्लाई के कारण कृषि जिंसों की कीमतों में तेजी नहींआ रही है। यदि केवल 5 फीसदी कृषि भूमि को कृषि वानिकी में 

बदल दिया जाय (भारत में कुल कृषि भूमि लगभग 15 मिलियन हेक्टेयर है) तो हमें 750 मिलियन सीबीएम लकड़ी मिलेगी जो कि चीन के कृषि वानिकी के कुल उत्पादन से अधिक होगी। यदि कृषि वानिकी के लिए समर्पित वर्तमान भूमि के अतिरिक्त 1 फीसदी कृषि वानिकी के लिए दिया जाये, तो यह हमारी जरूरत के लिए पर्याप्त है। इसलिए हम फर्नीचर निर्यात के साथ-साथ देश की अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए तैयार हैं। यह वुड पैनल इंडस्ट्री के साथ-साथ कृषि वानिकी में भी करोडों रोजगार प्रदान करेगा। श्री रुद्र चटर्जी, अध्यक्ष, फर्नीचर समिति, फेडरेशन ऑफ इंडियन चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की)ः ‘फर्नीचर उद्योगः भारत में विकास के अवसर‘ पर यह चौंकाने वाली बात है कि भारत में फर्नीचर का कोई बड़ा उद्योग नहीं है क्योंकि चाहे वह लकड़ी हो, श्रम हो या मांग हो, ऐसा कुछ भी नहीं है जो भारत के पास नहीं है! कई विशिष्ट कारण हैं कि भारत एक प्रमुख फर्नीचर निर्यातक देश क्यों नहीं है? और ये सभी कारण कृत्रिम हैं। फर्नीचर उद्योग को 2014 तक लघु उद्योग के रूप में रेगुलेट किया गया था, इसलिए कोई भी निवेश नहीं कर सकता था। और दुर्भाग्य से किसी बड़ी कंपनी को बेचने के लिए आपको एक बड़े फर्नीचर फैक्ट्री की आवश्यकता होती है। यह केवल एक बढ़ई का काम नहीं है, बल्कि अत्यधिक डिजाइन इंटेंसिव, सैंपल इंटेंसिव और काफी संख्या में मशीनरी की आवश्यकता होती है। तो, हमारे देश में स्किल सेट विकसित ही नहीं हुआ।

उन्हें पकड़ने के लिए आपके पास प्रशिक्षित श्रमिक होने चाहिए जो मुझे यकीन है कि हमारे पास होगा, दूसरा हमारे पास सम्बंधित लकड़ी, प्लाइवुड, एमडीएफ, पार्टिकिल बोर्ड इत्यादि हैं। पर इसके लिए हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे पास प्रमाणित लकड़ी हो। भारतीय घरेलू बाजार में हम बढ़ई की दुकान से फर्नीचर खरीदते थे, हमने कभी नहीं देखा कि लकड़ी कहां से आ रही थी। इसलिए, हमारे पास फर्नीचर बनाने के लिए लकड़ी, प्रशिक्षित श्रमिकों, बड़े आधुनिक कारखानों की बहुत अच्छी ट्रेसबिलिटी होनी चाहिए।

फर्नीचर की मांग में वृद्धि जारी रहेगी, क्योंकि जैसे-जैसे लॉकडाउन समाप्त होगा लोग अपने बच्चों और परिवार के सदस्यों को काम

फर्नीचर और पैनल उद्योग आपस में जुड़ा हैं क्योंकिफर्नीचर की रीढ़ पैनल ही है  चाहे वह प्री लेमिनेटेड पार्टिकल बोर्ड हो, प्री लैमिनेटेड एमडीएफया प्लाईवुड हो। जो लोग कारखाने से बने फर्नीचर नहींचाहते हैं, वे टेलर-मेड फर्नीचर खरीदते हैं और हमारे पास भारत में बहुत सारे कारपेंटर भी हैं, इसलिए प्लाइवुड का भीभविष्य अच्छा है और ग्रोथ जारी रहने वाली है।

करने के लिए अलग-अलग कमरों में आराम से एडजस्ट करने के लिए बड़े घरों में शिफ्ट हो जाएंगे, क्योंकि सभी कामों के लिए अब आपको वर्क फ्रॉम होम कैपेसिटी, स्टडी फ्रॉम होम कैपेसिटी, होम ऑफिस, की जरूरत है इसलिए होम फर्निशिंग सेक्टर में जबरदस्त वृद्धि हो रही है। हम इसे वियतनाम या बांग्लादेश को नहीं खो सकते। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि 2021-22 हम सभीआवश्यक रेगुलेटरी चीजें कर लें, ताकि भारत इस बाजार पर कब्जा कर सके। हम बुनियादी ढांचागत चीजें तैयार कर लें ताकि भारत एक फर्नीचर हब बन सके। अच्छी नीतियां अच्छी कंपनियों की मदद कर रही हैं। तो अगर हम लकड़ी उगाते हैं तो यह किसानों, वअर्थव्यवस्था के साथ-साथ रोजगार सृजन के अलावा पर्यावरण के

श्री एडवर्ड केरी, सीईओ, मैनर एंड म्यूजः 30 साल पहले भारत तथा चीन में कोई खास अंतर नहीं था दोनों का स्तर समान था और उनकी फर्नीचर फैक्ट्री भी बहुत छोटी थी। दक्षता और प्रतिस्पर्धा के मामले में आज उनका अलग स्तर है। वे इस बारे में बहुत गंभीर हैं और दुनिया भर में उनकी सप्लाई चेन है। उन्होंन बेहतरीन मशीनरी, बेहतरीन सिस्टम में निवेश किया है इसलिए वे बहुत आगे हैं। भारत में अपार संभावनाएं हैं, आइए हम सप्लाई चेन और कच्चे माल जैसे रसायन, फोम आदि पर ध्यान दें, हम उन्हेंहरा सकते हैं। बहुत सारी वियतनामी कंपनियों के कारखानों और एमडीएफ फैसिलिटी में उनकी उच्च दक्षता है और वे कच्ची लकड़ी, फोम मैन्युफैक्चरिंग आदि का उपयोग करती हैं। फर्नीचर उद्योग के लिए हमें पैनल उद्योग से विश्वसनीय गुणवत्तापूर्ण सप्लाई की आवश्यकता होती है। थ्ैब् रेटेड वुड कंपोजिट की बात करें तो भारत वास्तव में दुनिया भर में वुड कम्पोजिट के उपयोगकर्ताओं की सूची में मौजूद ही नहीं है। भारत के पास कंपोजिट की सही कीमत और सर्वोत्तम नीति के साथ सस्टेंनबिलिटी होनी चाहिए क्योंकि पूरी दुनिया अब सस्टेंनबिलिटी की ओर बढ़ रही है और बहुत से ग्राहक अब एफएससी मेटेरियल की मांग कर रहे हैं और अमेरिका में इस ट्रेंड को जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते से सहयोग भी मिल रहा है तथा उन पर अत्यधिक दबाव है। इसलिए हमें खुद के प्लांटेशन और इन संसाधनों पर अधिक नियंत्रण रखना होगा। लिए भी अच्छा होगा।

आजकल प्लांटेशन टिम्बर के उपयोग के कारण परीक्षण मापदंडों में संशोधन की आवश्यकता है जैसे इसके स्टैटिक बेन्डिंग स्ट्रेंथ, टेंसाइल स्ट्रेंथ और लोड बियरिंग स्ट्रेंथ, आईएस 710 और आईएस 4990 आदि में ग्लू सियरस्ट्रेंथ, इत्यादि क्योंकि ये टिम्बर अपरिपक्व हैं और इनमें नेचुरल फारेस्ट टिम्बर के मध्यम/उच्च घनत्व वाले परिपक्व टिम्बर की तुलना में कम ताकत होते हैं और प्लाइवुड बीआईएस विनिर्देश में निर्धारित एमओई और एमओआर वैल्यू हासिल नहीं कर सकता है।

डॉ. एस.के. नाथ, संयुक्त निदेशक (सेवानिवृत्त), (इिपिर्टि) ‘पैनल प्रोडक्ट फ्रॉम प्लांटेशन टिम्बर एंड एमेन्डिंग बीआईएस स्टैण्डर्ड‘ पर। प्लाइवुड निर्माताओं के लिए कई मानक हैं क्योंकि ग्राहकों के लिए निश्चित और समान गुणवत्ता और संतुष्टि के साथ उत्पादन करने के लिए यह उन्हें मार्गदर्शन करता है। वैज्ञानिक विकास, उपयोग और आवश्यकता में परिवर्तन, उपयोग के तरीकों में वृद्धि/कमी और सोर्सड मेटेरियल में बदलाव के कारण उत्पाद में सुधार के साथ मानक में भी संशोधन की जरूरत है।

आज उपभोक्ता नहीं जानता है कि वे क्या खरीद रहा है। आज मानक तकनीक, मानक एडहेसिव और उपलब्ध लकड़ी से बने उत्पाद को खरीदने और बीआईएस के फेस वैल्यू को ठीक करने की आवश्यकता है क्योंकि वैल्यू में बदलाव के साथ हमें मानक को निर्धारित करने की आवश्यकता है। यदि मानक ठीक है और उत्पाद आप टू दी मार्क नहीं है, फिर भी बीआईएस मार्क लगा है तो उपभोक्ता नुकसान उठा रहे है क्योंकि वे नहीं जानते कि वे क्या खरीद रहे हैं। क्या यह वैसा है जो मानक में कहा गया है? इसलिए मानक बदलने की जरूरत है। प्लाइवुड पर 3 बीआईएस मानकों के लिए अध्ययन किया गया, आईएस 303, आईएस 710, आईएस 4990। अनुसंधान एवं विकास के संबंध में, उपभोक्ताओं की जरूरत और प्लाइवुड पर 10 साल के नमूने के परीक्षण का डेटा विश्लेषण परिणाम प्राप्त किया गया। इन मानकों पर एक मसौदा संशोधन तैयार किया गया है और मानकों के संशोधन के लिए बीआईएस को भेजा गया है।

परीक्षण मापदंडों में बदलाव की जरूरत है। उनमें जो शामिल है वे हैं, आईएस 710 प्लाइवुड के लिए प्रिजर्वेटिव ट्रीटमेंट 12 किग्रा/सीबीएम परिरक्षक का प्रावधान होना चाहिए और इसके लिए एकमात्र तरीका यह है कि ग्लू लाइन प्रिजर्वेटिव (जीएलपी) से बने प्लाइवुड को डुबो कर बीआईएस फॉर्मूलेशन के अनुसार ट्रीट किया जाता है। लेकिन शायद ही कोई प्लाइवुड निर्माता ऐसा करते हैं। प्लाइवुड उद्योग की राय यह है कि जब इसे ईमानदारी से किया जाए तो बाजार से प्लाइवुड के बायो-डिग्रेडेशन की कोई शिकायत ही ना आए।

आजकल प्लांटेशन टिम्बर के उपयोग के कारण परीक्षण मापदंडों में संशोधन की आवश्यकता है जैसे इसके स्टैटिक बेन्डिंग स्ट्रेंथ, टेंसाइल स्ट्रेंथ और लोड बियरिंग स्ट्रेंथ, आईएस 710 और आईएस 4990 आदि में ग्लू सियर स्ट्रेंथ, इत्यादि क्योंकि ये टिम्बर अपरिपक्व हैं और इनमें नेचुरल फारेस्ट टिम्बर के मध्यम/उच्च घनत्व वाले परिपक्व टिम्बर की तुलना में कम ताकत होते हैं और प्लाइवुड बीआईएस विनिर्देश में निर्धारित एमओई और एमओआर वैल्यू हासिल नहीं कर सकता है।

प्लांटेशन टिम्बर के प्लाइवुड से हासिल टेस्टिंग वैल्यू के अनुसार एमओई और एमओआर वैल्यू की समीक्षा करने की जरूरत है। फेस विनियर की थिकनेस भी उन मापदंडों में से एक है जिसे बदलने की जरूरत है। बीआईएस के अनुसार फेस विनियर ग्लू कोर के थिकनेस से आधा या अधिक होना चाहिए। क्वालिटी लॉग की फेस विनियर की ऊंची लागत के कारण, अब उपयोग किए जाने वाले फेस विनियर की थिकनेस सभी ग्रेड के प्लाइवुड में 0.3 मिमी है। इससे फेस ग्रेन के एमओई और एमओआर का वैल्यू कम हो जाता है, जो बीआईएस द्वारा निर्धारित मानदंडों के विरुद्ध है।

प्लांटेशन लॉग से बने अधिकांश विनियर को सपाट नहीं सुखाया जा सकता है। सुखाने पर विनियर नालीदार (करुगेटेड) हो जाता है। इनसे बने प्लाइवुड में वॉर्पिंग दिखाई देती है जो यूजर के लिए दिक्क्तें पैदा करती है। पैनल पोडक्ट के समतलता पर परीक्षण को बीआईएस मानकों में शामिल करना आवश्यक है। कुछ कम घनत्व वाली लकड़ी नरम और स्पंजी होती है। यदि बॉन्डिंग पर्याप्त नहीं होती तो ऐसी लकड़ी पानी के संपर्क में आते ही नमी को अवशोषित करते हैं और फूलने लगती है और पैनल खराब हो जाती है। प्लाइवुड की स्वेलिंग पर टेस्टिंग बीआईएस में शामिल करने की जरूरत है।

फॉर्मल्डिहाइड उत्सर्जन पर संशोधन बहुत महत्वपूर्ण है। प्लाइवुड में फॉर्मल्डिहाइड बेस्ड एडहेसिव से विनियर की बॉन्डिंग की जाती है तो ये पूरा जीवन काल विशेष रूप से उंचे तापमान और नमी के चलते धीरे धीरे फॉर्मल्डिहाइड का उत्सर्जन करता है। फॉर्मल्डिहाइड का लगातार साँस में लेना मानव स्वास्थ्य के लिएखतरनाक है और गंभीर रोग पैदा करता है, जबकि पूरी दुनिया ने इसके लिए मानक तय किए और पैनल उत्पादों से फॉर्मल्डिहाइड उत्सर्जन की सीमा तय की है, भारत में बीआईएस ने अभी तक इसके लिए उत्सर्जन की सीमा तय नहीं की है।

इसके अलावा, आईएस 2202 के अनुसार, फ्लश डोर विभिन्न प्रकार के हो सकते हैं जैसे होलो कोर, सॉलिड कोर और मिश्रित प्रकार के। सॉलिड कोर में लकड़ी के स्ट्रिप्स, पार्टिकल बोर्ड, एमडीएफ इत्यादि जैसे फिलर होते है। उपर्युक्त दिशानिर्देश निर्माताओं के लिए अच्छे हैं कि वे समान रूप से मानक उत्पाद बना सके लेकिन मानक केवल निर्माता के लिए नहीं हैं। इसमें यूजर को भी कवर करना चाहिए और उनकी जरूरतों को पूरा करना चाहिए। एक यूजर को डिवीजन डोर, किचेन डोर, बाथरूम डोर, फ्रंट डोर, बैकसाइड डोर, एस्केप डोर, फायर डोर, टेरेस डोर, स्टोरेज रूम डोर, रूफ टॉप डोर आदि की जरूरत होती है।

डॉ. एम.पी. सिंह, आईएफएस, निदेशक, आईडब्ल्यूएसटी, बेंगलुरुः उम्मीद है कि भारत में बड़े पैमाने पर मास लकड़ी का बाजार होगा। हम इसके लिए बहुत उत्साहित हैं। यदि हम सभी सीएलटी और ग्लूलैम के लिए अपनी स्पेसीज को बढ़ावा दें तो अच्छा होगा, इसलिए हम आईडब्ल्यूएसटी में एक स्ट्रक्चरल सीएलटी और ग्लूलैम टेस्टिंग फैसिलिटी की योजना बना रहे हैं ताकि भविष्य में 

प्लांटेशन लॉग से बने अधिकांश विनियर को सपाट नहीं सुखाया जा सकता है। सुखाने पर विनियर नालीदार (करुगेटेड) हो जाता है। इनसे बने प्लाइवुड में वॉर्पिंग दिखाई देती है जो यूजर के लिए दिक्क्तें पैदा करती है। पैनल पोडक्ट के समतलता पर परीक्षण को बीआईएस मानकों में शामिल करना आवश्यक है। कुछ कम घनत्व वाली लकड़ी नरम और स्पंजी होती है। यदि बॉन्डिंग पर्याप्त नहीं होती तो ऐसी लकड़ी पानी के संपर्क में आते ही नमी को अवशोषित करते हैं और फूलने लगती है और पैनल खराब हो जाती है। प्लाइवुड की स्वेलिंग पर टेस्टिंग बीआईएस में शामिल करने की जरूरत है।

फॉर्मल्डिहाइड उत्सर्जन पर संशोधन बहुत महत्वपूर्ण है। प्लाइवुड में फॉर्मल्डिहाइड बेस्ड एडहेसिव से विनियर की बॉन्डिंग की जाती है तो ये पूरा जीवन काल विशेष रूप से उंचे तापमान और नमी के चलते धीरे धीरे फॉर्मल्डिहाइड का उत्सर्जन करता है। फॉर्मल्डिहाइड का लगातार साँस में लेना मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है और गंभीर रोग पैदा करता है, जबकि पूरी दुनिया ने इसके लिए मानक तय किए और पैनल उत्पादों से फॉर्मल्डिहाइड उत्सर्जन की सीमा तय की है, भारत में बीआईएस ने अभी तक इसके लिए उत्सर्जन की सीमा तय नहीं की है।

इसके अलावा, आईएस 2202 के अनुसार, फ्लश डोर विभिन्न प्रकार के हो सकते हैं जैसे होलो कोर, सॉलिड कोर और मिश्रित प्रकार के। सॉलिड कोर में लकड़ी के स्ट्रिप्स, पार्टिकल बोर्ड, एमडीएफ इत्यादि जैसे फिलर होते है। उपर्युक्त दिशानिर्देश निर्माताओं के लिए अच्छे हैं कि वे समान रूप से मानक उत्पाद बना सके लेकिन मानक केवल निर्माता के लिए नहीं हैं। इसमें यूजर को भी कवर करना चाहिए और उनकी जरूरतों को पूरा करना चाहिए। एक यूजर को डिवीजन डोर, किचेन डोर, बाथरूम डोर, फ्रंट डोर, बैकसाइड डोर, एस्केप डोर, फायर डोर, टेरेस डोर, स्टोरेज रूम डोर, रूफ टॉप डोर आदि की जरूरत होती है।

डॉ. एम.पी. सिंह, आईएफएस, निदेशक, आईडब्ल्यूएसटी, बेंगलुरुः उम्मीद है कि भारत में बड़े पैमाने पर मास लकड़ी का बाजार होगा। हम इसके लिए बहुत उत्साहित हैं। यदि हम सभी सीएलटी और ग्लूलैम के लिए अपनी स्पेसीज को बढ़ावा दें तो अच्छा होगा, इसलिए हम आईडब्ल्यूएसटी में एक स्ट्रक्चरल सीएलटी और ग्लूलैम टेस्टिंग फैसिलिटी की योजना बना रहे हैं ताकि भविष्य में 

हमारे अपने प्रयोग हों और अधिक स्ट्रक्चर्ड वुड हो। वुड कम्पोजिट में यह एक नया क्षेत्र होगा। मैं पैनल और फर्नीचर उद्योग की बाधाओं के बारे में भी बात कर रहा हूं।

हम चाहते हैं कि भारत सरकार एक इकोसिस्टम बनाये, तभी हम पैनल इंडस्ट्री ले कम्पोजिट सेक्शन में सही विकास कर सकते हैं। वे वुड बेस्ड इंडस्ट्री के लिए दिशा-निर्देशों को संशोधित करने का प्रयास कर रहे हैं ताकि फार्म वुड की स्वीकृत केटेगरी हो। भारत में सर्टिफिकेशन संशोधित करने की जरूरत है अन्यथा हमारे पास भारत में थ्ैब् सर्टिफाइड वुड नहीं होगा। हम इस क्षेत्र में २० फीसदी का ग्रोथ हासिल कर सकते हैं। हम निश्चित रूप से उद्योग के लिए काम करेंगे और सरकार देश में उपयोग में आने वाले एग्रो फॉरेस्ट्री, पैनल प्रोडक्ट, वुड कंपोजिट और देश में उपयोग होने वाली लकड़ी के लिए भी इस तरह के इको सिस्टम को बनाने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है। हम प्लास्टिक को कार्बन न्यूट्रल मेटेरियल से भी बदलने की कोशिश कर रहे हैं।

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