समुद्री माल ढुलाई की परेशानी बरकरार, आयात-निर्यात दोनों प्रभावित

person access_time   3 Min Read 19 October 2021

कंटेनरों की कमी भारत के पूरे वुड और डेकोरेटिव पैनल इंडस्ट्री के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। इसने काफी उथल पुथल पैदा कर दी है, क्योंकि भारतीय वुड पैनल इंडस्ट्री अपने विभिन्न प्रकार के कच्चे माल के लिए मुख्य रूप से आयात पर निर्भर है, जिससे इसके तैयार उत्पादों की कीमतें हर दिन बढ़ती जा रही हैं और इसने क्षमता उपयोग को भी प्रभावित किया है।

प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार, डेकोरेटिव लेमिनेट, पीवीसी बोर्ड्स, पीवीसी लेमिनेट, एल्युमीनियम कम्पोजिट पैनल्स, डोर्स, फर्नीचर, टिम्बर इंडस्ट्री आदि जैसी भारतीय मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर अपनी 50 प्रतिशत से अधिक क्षमता का उपयोग करने में सक्षम नहीं हैं क्योंकि कंटेनरों की कमी के कारण कच्चे माल की उपलब्धता अच्छी नहीं है। रिपोर्ट है कि डेकोरेटिव लेमिनेट, पीवीसी लेमिनेट, एसीपी आदि बनाने के लिए उनके डिजाइन और कलर के स्टॉक समाप्त हो गए हैं और वे कई कलर बंद करने को मजबूर हैं। यह भी बताया गया कि अनुमानित समय पर उपलब्ध नहीं हो पाने के कारण नए फोल्डर भी शुरू करने में देरी हो रही है।

 

कंटेनर विभिन्न बंदरगाहों पर फंसे हुए हैं, जिससे सभी शिपिंग कंपनियों को सुचारू रूप से काम करने का कोई रास्ता नहीं मिल रहा है। कोविड का डर फिर से उभर रहा है, कंटेनर गंभीर चिंता का विषय बनता जा रहा हैं, जिससे भारतीय निर्माता खुद को बंधक बना महसूस कर रहे हैं।

आयातकों का कहना है कि मूल देशों में ही कंटेनर भाड़ा और कीमतें बढ़ना प्रमुख कारक हैं, जिससे भारत में सभी प्रकार के कागजों की लैंडिंग कॉस्ट बढ़ गई है। नई प्राप्त जानकारी के अनुसार, कंटेनर की कमी के बाद माल ढुलाई का खर्च लगभग 8 से 10 गुना की अप्रत्याशित वृद्धि देखी गई है जो अभी आयातित कच्चे माल के लिए यह सबसे बड़ी चिंता है।

सबसे ज्यादा असर कागज और केमिकल आयातकों पर निर्भर कारोबारियों पर पड़ा है। स्क्रैप और अन्य वस्तुएं जिनमें वेस्ट पेपर और पीवीसी, रेजिन, एडिटिव्स, स्क्रैप पेपर, व्हाइट प्रिंट बेस पेपर, मेलामाइन, फिनोल, मेथनॉल, डिजाइन पेपर, फेस विनियर, डेकोरेटिव विनियर और कई अन्य जैसे सभी कच्चे माल शामिल हैं, जसकी कीमतें दोगुनी हो गई हैं, जिससे मैन्युफैक्चरिंग का मुनाफा काफी ज्यादा घट गया है और चारो तरफ अराजकता, हानि और वित्तीय अस्थिरता पैदा हो रही है।

You may also like to read

shareShare article
×
×