मैचवेल डेकॉर प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक श्री मनोज अग्रवाल ने भारत के डेकोरेटिव पेपर इंडस्ट्री में अपने 25 साल पूरे किये। उनके पास बाजार में बदलाव के अनुभव के साथ साथ बहुत सारी अच्छी यादेंहैं जो लेमिनेट इंडस्ट्री के विकास की पूरी कहानी कहता है। प्लाई रिपोर्टर के साथ बातचीत करते हुए, उन्होंने डेकॉर पेपर इंडस्ट्री के अतीत और वर्तमान के बारे में और आने वाले वर्ष में अपने व्यवसाय के विकास कोबढ़ाने की अपनी योजना के बारे में बात की। प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश।
प्र. डेकॉर पेपर इंडस्ट्री में अपने 25 वर्षों के सफर के बारे में संक्षेप में बताएं?
हमने 1997 में एक मशीन लगाकर शुरुआत की थी और अब हम अपना दूसरा प्लांट शुरू करने जा रहे हैं। वर्तमान प्लांट मैचवेल डेकॉर प्राइवेट लिमिटेड के नाम से संचालित है। इस प्लांट में हम इस वर्ष छह हाई स्पीड प्रिंटिंग लाइनें स्थापित कर रहे हैं। अभी हमने एक लाइन से अपना व्यावसायिक उत्पादन शुरू कर दिया है और अन्य 3 लाइनें लगाई जा रही हैं। मैं चाहता हूँ कि लेमिनेट और पार्टिकल बोर्ड इंडस्ट्री के हमारे सहयोगियों की संख्या बढ़ती रहे।
प्र. आप उद्योग के विकास के साथ 25 वर्षों की अपनी यात्रा को कैसे जोड़ते हैं? क्या कोई भावनात्मक क्षण है जिसके बारे में आपबात करना चाहते हैं?
मैं बताना चाहूंगा कि जिनके साथ मैंने 25 साल पहले काम करना शुरू किया था, वे आज भी हमारे साथ जुड़े हुए हैं और हम उनके लिए लगातार काम कर रहे हैं। उनके सहयोग से हम संतोषजनकरूप से आगे बढे और विकास किये हैं। और, आशा करते हैं कि भविष्य में हम उसी गति से आगे बढ़ेंते रहेंगे। इसलिए, हमारे रिश्ते में कभी ग्रे लाइन देखने को नहीं मिली। हमने अपने रिश्ते को अच्छे तरीके से बनाए रखा। हम उनके बहुत आभारी हैं जिन्होंने हमें इस उद्योग में उतरने का मार्ग दिखाया। जय डोर के गोविंद जी उन पहले लोगों में से थे जिन्होंने हमें मशीनें लगाने के लिए प्रेरितकिया और ऑर्डर के साथ सहयोग किया। एक और अविश्वसनीयव्यक्ति लाहरी लेमिनेट के श्री प्रदीप अग्रवाल जी थे, जिन्हें हम कभी नहीं भूल पाएंगे।
प्र. उस समय और आज की क्वालिटी में आप क्या बदलाव देखते हैं?
देखिए, उस समय इंडस्ट्री शुरुआती दौर में थी और अच्छे डिजाइन नहीं बन रहे थे। जब भी हम अच्छे डिजाइन लाने की कोशिश करते तो हमें यूरोप की ओर देखना होता था। उस समय भी हमने यूरोप से तीन चार ट्रेंड इंपोर्ट किए थे जिससे हमारे ब्रांड मैचवेल का नाम स्थापित हुआ। उस समय हम जर्मनी से प्रिंट बेस आयात करते थे और भारत में प्रिंट कर रहे थे। बाद में हम चीन से भी आयत करने लगे, जब हमें पता चला कि चीन के पास भी ऐसी ही ऑफरिंग है।
धीरे-धीरे हमने अपनी क्वालिटी में सुधार किया और हमारी मशीनों में भी काफी बदलाव आया। बेहतर क्वालिटी के लिए हमने समय के साथ कई तकनीकी बदलाव कर उसे और अच्छा करता गया। हमने बहुत सुधार किया और अब आप क्वालिटी में काफी बदलाव देख सकते हैं। आज हम क्वालिटी के मामले में चीन को टक्कर दे रहे हैं। अब यह लोगों और उनकी मानसिकता पर निर्भर है कि वे भारत में बने उत्पादों की ओर कब रुख करेंगे। लेकिन, प्रिंटिंग का व्यवसाय होने के कारण यह एक चुनौतीपूर्ण कार्य है क्योंकि यह बहुत ही टेकनिकल है। अब रोजाना प्रौद्योगिकी उन्नयन करना होता है।
प्र. क्या यह भारत में पहली प्रिंटिंग यूनिट थी या उस समय पहले से ही कुछ और यूनिट अस्तित्व में थे?
आप कह सकते हैं कि उस समय दो और यूनिटें थीं, लेकिन हमने ही इसे पेशेवर रूप से शुरू किया था। आज लगभग 25 यूनिटें हैं लेकिन प्रमुख और बड़े प्लेयर्स तीन से चार ही हैं।
प्र. इन 25 वर्षों में उद्योग किस स्तर पर आत्म निर्भर हो गया है, जैसे सिलेंडर, पेपर क्वालिटी या प्रिंट क्वालिटी आदि में?
इस इंडस्ट्री में प्रिंटिंग के लिए हम आत्मनिर्भर नहीं हैं क्योंकि हमें अभी भी सिलेंडर, डिजाइन और पेपर के लिए विदेशों की ओर देखना पड़ता है। हमें सिलेंडर जर्मनी, चीन, ताइवान, जापान आदि से लाना होता है और पेपर के लिए भारत में एकमात्र कंपनी आईटीसी है जो क्वालिटी पेपर देती है। लेकिन उनकी क्षमता बहुत कम है क्योंकि वे बाजार की मांग का केवल 30 से 35 फीसदी ी पूरा करते हैं। शेष 60 फीसदी खपत के लिए इंडस्ट्री प्लेयर्स को विदेशों की ओर देखना होता है। हमें मुख्य रूप से चीन पर निर्भर रहना होता है।
प्र. ऐसा कहा जाता है कि भारतीय प्रिंटर डिजाइन की सिर्फ कॉपी करते हैं, आपका क्या कहना है?
हम ऐसे कभी नहीं करते हैं। वास्तव में हम डिजाइन हासिल करते हैं और उनमें से चुनते हैं। और, उसके बारे में पूछते हैं। हम नहीं जानते कि वह किसके डिजाइन हैं। हालाँकि डिजाइन कॉपीराइट के अंतर्गत आता है, लेकिन इसे यूरोप में बहुत महंगा बेचा जाता है।
प्र. क्या भारत में उत्पादित प्रिंट क्वालिटी चाइनीज प्रिंट के बराबर है?
अब तक हम चाइनीज प्रिंट के बराबर हैं। मैचिंग में समय लगता है और कागज की बर्बादी और प्रक्रिया में शामिल होने के कारण धन की भी आवश्यकता होती है। आप देख सकते हैं कि यूरोप में प्रिंट बेस पेपर हमारी तुलना में सस्ता है और वे इसे पांच गुना अधिक कीमत पर बेचते हैं। वे वेस्टेज कॉस्ट और फाइनल आउटपुटहासिल करने के लिए किए गए प्रयासों के लिए चार्ज करते हैं। भारत में कोई भी उसके लिए पेमेंट नहीं करना चाहता है। लोगों की मानसिकता भी ऐसी नहीं है।
प्र. 10 वर्षों के बाद, आप भारत में डेकोर पेपर प्रिंटिंग उद्योग के भविष्य को कैसे देखते हैं?
अगर हम अपनी प्रगति देखें, तो आने वाले दस वर्षों में हम इस संबंध में चीन को पीछे छोड़ देंगे, केवल एक चीज की आवश्यकता है उद्योग के लोगों के विश्वास और हमारे उत्पाद का रियलाइजेशन कि हम इसे कर सकते हैं। प्रिंटिंग में खर्च काफी होता है क्योंकि वेस्टेज होता है और वह लागत भी अंततः उद्योग को ही वहन करना पड़ता है। उद्योग को इसे समझने की जरूरत है। आज अगर हम एक किलो पेपर प्रिंट करते हैं, तो लगभग 70 किलो बर्बाद होता है। और अगर आप फाइन मोल्ड के लिए कोशिश करते हैं तो कम से कम 100 से 125 किलो बेकार चला जाता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि फाइनल पेपर आउटपुट एक किग्रा है या एक टन, एक फाइन मोल्ड के लिए वेस्टेज हमेशा कम से कम 100 किग्रा से 125 किग्रा तक होना चाहिए।
प्र. वर्तमान कंपनी मैचवेल डेकॉर प्राइवेट लिमिटेड का बुनियादी ढांचा क्या है?
हमने इसे 2700 वर्ग फुट एरिया में फैले पूरी तरह से नया प्रीमाइसेस बनाया है जिसमें एक हाई स्पीड लाइन शुरू की गई है और अन्य पांच से छह लाइनें इस साल दिवाली तक लगाई जाएंगी। दूसरा और तीसरा क्रमशः अप्रैल और मई तक लगाया जाएगा। पुराने प्लांट में हमारे पास 10 रनिंग लाइनें हैं।
प्र. मौजूदा प्लांट और इस नए प्लांट की भी स्थापित क्षमता क्या है?
हमारे पास 600 टन की स्थापित क्षमता है लेकिन अभी हम 500 टन तक प्रिंट करने के लिए उपयोग करते हैं। और इस नए प्लांट में हमने 500 टन का विस्तार किये हैं। हमारी योजना अलग-अलग जगहों पर गोदामों को शिफ्ट करके जरूरत पड़ने पर और लाइनें लगाकर विस्तार करने की हैं।
प्र. यात्रा के 25 साल पूरे होने पर आप इंडस्ट्री को क्या संदेश देना चाहेंगे?
उद्योग जगत को मेरा संदेश है कि वे हमें अपना सहयोग देते रहें जैसा उन्होंने आज तक दिया है। हम उद्योग के विकास के लिए तहे दिल से काम कर रहे हैं। पहले एचपीएल बनाने के लिए जो भी चीजों की आवश्यकता होती थी, भारत में 27 आवश्यक वस्तुओं में से केवल दो या तीन ही उपलब्ध थीं, बाकी सभी को विदेशों से आयात किया जा रहा था। अब चीजें आसान हो रही हैं जिसमें प्रिंटिंग पेपर सबसे पहले आता है। यह सबसे महत्वपूर्ण मेटेरियल है और भारत में बहुत आसानी से उपलब्ध है। ऐसा इसलिए है क्योंकि हम इसे अच्छी तरह से कर रहे हैं। पहले प्रिंटिंग पेपर हासिल करना काफी मुश्लिल होता था। ये सभी सुविधाएँ 1997 से 2000 के बाद विकसित हुए है।
प्र. जब कोई नया लेमिनेट मैन्युफैक्चरर बाजार में आता है तो पेपर सेलेक्शन के लिए उन्हें किन किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
सबसे पहले, वे क्या बना रहे हैं? वे किस प्रकार के प्रोडक्ट के लिए किस प्रकार के मेटेरियल के उपयोग करने को तैयार हैं? अगर वे 0.8 एमएम का फोल्डर बना रहे हैं, तो सबसे पहले उन्हें मार्केट में मौजूद क्राइटेरिया पर रिसर्च करनी चाहिए। उस बाजार में स्वीकार्य टेक्सचर, डिजाइन आदि की क्वालिटी बनाने से आपके प्रोडक्ट का एक्सेप्टेन्स कहां होगी? फिर एक प्रिंटर चुनें और पेपर मांगें फिर उत्पादन के लिए उपलब्ध सबसे अच्छे पेपर का चयन करें। आज बाजार में कुछ बड़े प्लेयर्स के साथ-साथ कई छोटे प्रिंटर हैं, तो आपके लेमिनेट सिंक के लिए पेपर की कीमत क्या है? उसमें पेपर का कितना योगदान है? आप कितना प्रतिशत खर्च पेपर में कर रहे हैं और आपको कितना मार्जिन मिलने वाला है? इस पर ध्यान दें। डिजाइन सेलेक्शन के लिए प्रिंटर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और यह बाजार की जरूरत के अनुसार होना चाहिए।
प्र. प्री-लैम बोर्ड इंडस्ट्री विकसित हो रहा है; आप इसके लिए क्या पेशकश कर रहे हैं और आप इसके लिए कितने गंभीरता हैं?
अभी हमारा ध्यान एचपीएल और प्री-लैम पार्टिकल बोर्ड में 50ः50 है। मुझे लगता है कि पार्टिकल बोर्ड सेगमेंट धीरे-धीरे रीजनल हो जाएगा। प्री-लैम पार्टिकल बोर्ड में, अभी तक कोई प्रिंट क्वालिटी पैरामीटर नहीं है। भविष्य में लोग प्री-लैम पार्टिकल बोर्ड के लिए प्रिंट क्वालिटी के अपने मानदंड निर्धारित कर सकते हैं, जिसमें अच्छे प्रिंटर के साथ काम करने की दिलचस्पी बढ़ रही है।