उत्तर प्रदेश में नई प्लाइवुड फैक्टरियाँ: आस बाकी या...?

person access_time   3 Min Read 11 December 2019

उत्तर प्रदेश में लकड़ी आधारित उद्योग के लिए नए लाइसेंसों पर अनिश्चितता, नकारात्मक दिशा में बढ़ रही है, क्योंकि राज्य में लकड़ी की उपलब्धता से संबंधित पिछली दो सुनवाई के दौरान राज्य का वन विभाग, एनजीटी में पर्याप्त तथ्य नहीं दे पाया है। अब सवाल यह है कि लाइसेंसों को आमंत्रित करने के लिए विधिवत प्रक्रिया पूरी होने के बाद किए गए निवेश का आगे क्या होगा? लाइसेंस प्रक्रिया में देरी के कारण वुड पैनल उद्योग में कई ऐसे सवाल उठ रहे हैं क्योंकि यह अभी भी अदालत के आदेश के अनुसार रूका हुआ है। इस भ्रम तथा नए कारखानों, भूमि, शेड, उपकरणm और मशीनों में किए गए करोड़ों के निवेश के लिए कौन जिम्मेदार है? अगर इनकार किया जाता है, तो यह राज्य में वुड पैनल और प्लाइवुड उद्योग के विकास को कैसे प्रभावित करेगा? निवेशकों को उनका पैसा वापस कैसे मिलेगा? मशीनरी सप्लायर्स नुकसान की भरपाई कैसे करेंगे? किसान हित को कैसे पूरा करेगी सरकार? कौन विजेता होगा या कौन हारेगा?

एचओसीएल और दीपक फेनोलिक्स की शिकायत पर भारत सरकार ने फेनाॅल पर सेफगार्ड ड्यूटी लगाने की जांच शुरू की है। हालांकि, फेनाॅल पर पहले से ही सात देशों जैसे चीन ताइपे, यूरोपियन यूनियन, कोरिया, सिंगापुर, दक्षिण अफ्रीका, ताइवान और यूएसए से एंटी-डंपिंग लगा हुआ है, लेकिन, भारतीय लैमिनेट, प्लाइवुड और पैनल उद्योग, जो भारत में फेनाॅल के प्रमुख उपयोगकर्ता हैं, को डर है कि किसी भी और ड्यूटी के प्रभाव से फेनाॅल की कीमतें तेज होगी। यदि फेनाॅल के आयात पर सेफगार्ड ड्यूटी लगेगी, तो आने वाले समय में कई उत्पादों के दाम बढ़ेंगे। इलमा (इंडियन लैमिनेट्स मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन), और फिप्पी (फेडरेशन ऑफ इंडियन प्लाइवुड एंड पैनल इंडस्ट्री) फेनाॅल के आयात पर सेफगार्ड ड्यूटी लगाने का विरोध कर रहे हैं।

यह ज्ञातब्य है कि लैमिनेट्स और प्लाइवुड फेनाॅल के प्रमुख उपयोगकर्ता हैं और वे कुल खपत का लगभग 60 फीसदी उपभोग करते हैं। इल्मा के प्रेसिडेंट श्री विकास अग्रवाल ने प्लाई रिपोर्टर से कहा कि इलमा, इस कदम का विरोध कर रहा है, क्योंकि इससे घरेलू उत्पादकों का एकाधिकार हो जाएगा और वे पूरे बाजार को नियंत्रित करेंगे, साथ ही फेनाॅल की लागत में और अधिक वृद्धि होगी। उनका कहना है कि घरेलू फेनाॅल उत्पादक भारतीय आवश्यकताओं का केवल 60 फीसदी ही पूरा कर सकते हैं, इसलिए किसी भी अन्य आयात शुल्क के बाद लैमिनेट उत्पादकों के हितों को नुकसान होगा, और लागत बढ़ जाएगी। इसके बावजूद की मांग की आपूर्ति में अंतर है, याचिकाकर्ताओं ने दावा किया है कि इसका बड़ा हिस्सा भारतीय बाजार में आयात से ही आ रहा है जो कि मांग और आपूर्ति के अंतर को पाटने के लिए आवश्यकता से अधिक है। पिछली तिमाही की तुलना में 2019-20 के पहली तिमाही के दौरान आयात में वृद्धि अधिक थी। उन्होंने दावा किया है कि चीन द्वारा एंटी-डंपिंग शुल्क लगाने से विश्व स्तर पर फेनाॅल का ओवर सप्लाई है, और अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध अप्रत्याशित परिस्थितियां है, जिससे भारत में आयात में वृद्धि हुई है।

प्रमुख आवेदकों में से एक, मेसर्स दीपक फेनोलिक्स, जिसने नवंबर, 2018 में फेनाॅल उत्पादन शुरू किया था, ने 2019-20 के पहली तिमाही के दौरान उत्पाद की बिक्री और क्षमता उपयोग बड़ा गिरावट का दावा किया है। याचिकाकर्ताओं ने यह भी दावा किया है कि घरेलू उद्योग की बाजार हिस्सेदारी में गिरावट आई है, जबकि 2019-20 की पहली तिमाही में आयात में वृद्धि हुई है। उन्होंने यह भी दावा किया है कि उनके मुनाफे में भी गिरावट आई है, क्योंकि आयात बढ़ने से कीमतों पर दबाव होता है।

पक्ष में दिखता है, वहीं कई दूसरे पुराने लोग नए उद्योगों के पक्षधर हैं क्योंकि वे विस्तार और विकास चाहते थे। वन विभाग और किसान उद्योग के आने का पक्ष लेते हैं क्योंकि इससे लकड़ी की मांग बढ़ेगी, इसलिए अधिक प्लांटेशन होगी साथ ही बेहतर कीमत मिलेगी। पड़ोसी राज्य के प्लाइवुड उद्यमी, एनजीटी स्टे आर्डर से कहीं न कहीं खुश हैं, क्योंकि इसके चलते उन्हें प्रतिस्पर्धा कम करने में मदद मिल रही है और मांग में अधिक सहूलियत महसूस कर रहे है इसलिए मौजूदा उद्योग के लिए बेहतर संभावनाएं हैं, हालाँकि आपूर्ति पहले से ही मांग से अधिक है।

यमुनानगर, सांपला, गांधीधाम और पंजाब में प्लाइवुड क्लस्टर को निश्चित रूप से ‘कोई नया कारखाना नहीं’ का लाभ मिल रहा है क्योंकि लकड़ी की कीमतें स्थिर है। स्थापित पार्टिकल बोर्ड और एमडीएफ प्लांट भी राहत की सांस ले रहे हैं, नहीं तो 16 नए पार्टिकल बोर्ड, एमडीएफ लाइसेंस दिए गए थे जो बिक्री और मार्जिन पर और दबाव बढ़ा सकते हैं जो पहले से ही तनाव में थे। अधिक कारखानों के आने के कारण तैयार माल की आपूर्ति और लकड़ी की बढ़ रही कीमतों का दबाव, एक सच्चाई है जिसने निश्चित रूप से वुड पैनल उद्योग और व्यापार में और असंतुलन पैदा कर दिया है, जो पहले से ही देश में रियल एस्टेट में सुस्ती और अर्थववस्था में मंदी की स्थिति से जूझ रहा है।

नए लाइसेंस धारकों को उम्मीद है कि यह फैसला यूपी वन विभाग के पक्ष में आएगा और विधिवत संसाधित लाइसेंस पर लगे रोक, एक दो सुनवाई के बाद हटा दिया जाएगा। निवेशकों को उम्मीद है कि अदालती कार्यवाही परियोजनाओं में देरी करेगी, लेकिन पहले से ही दी गई लाइसेंस से इनकार नहीं किया जाएगा। दूसरी तरफ, वुड पैनल उद्योग का वह समूह, जो नए लाइसेंस के पक्ष में नहीं है, पूरी तरह तैयार है जो प्राधिकरण के तर्क का समर्थन करते हैं जहां लकड़ी का अनुमान दिखाया गया है वास्तव में सही नहीं है इसलिए नई इकाइयों को संचालित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। यह वास्तव में अब एनजीटी पर है, जिसमें वे किस परिप्रेक्ष्य में, वे मामले को देख रहे हैं। अगर कोई किसान का दृष्टिकोण अपनाता है, तो सरकार को एक अनुकूल आदेश मिलने की उम्मीद है। अब सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि वकील और कानूनी विशेषज्ञ कैसे अपना तर्क रख रहे हैं और किसे मजबूत समर्थन मिल रहा है, या तो पुराने वाले जो लाइसेंस का विरोध करते हैं या जो लाइसेंस के पक्षधर हैं और कुछ नया चाहते हैं।

त्रों के अनुसार, कई मजबूत और अग्रणी प्लेयर्स ने दिए गए लाइसेंस का विरोध करने के लिए विशेषज्ञों को नियुक्त किया है वहीं एक छोटा गुट इस मामले से लड़ने के लिए खड़ा है। यदि एनजीटी पूरी प्रक्रिया के खिलाफ आदेश जारी करता है, तो वैसे निवेशकों को सबसे ज्यादा नुकसान होगा जो सिविल वर्क और मशीन इंस्टालेशन जारी रखें हुए हैं। मौजूदा प्लेयर्स, जो अधिक प्रतिस्पर्धी नहीं होना चाहते हैं, इसके अलावा बहुत सारे कारक हैं। यूपी में उद्योग को बढ़ावा मिलने से कृषि वानिकी पर बेहतर लाभ के लिए किसान की उम्मीद कुछ समय के लिए नाउम्मीद में बदलती दिख रही है। सीडलिंग और वृक्षारोपण की गतिविधियां इंगित करेगा कि आगे क्या होने वाला है। उत्तर प्रदेश में उद्योग की राय के अनुसार, लगभग 60 नए प्लेयर्स जिन्होंने प्लांट लगाने से संबंधित काम शुरू किया है और पहले ही एक बड़ी राशि खर्च कर चुके हैं, उनमें से कुछ अब इसमें किए गए निवेश को अलग इंडस्ट्री में बदलने की सोच रहे हैं, कुछ बंद हो गए हैं और कई अभी भी इंतजार कर रहे हैं। देखते हैं कि अगली सुनवाई में क्या होने वाला है।

यूपी स्थित उद्योग के कुछ प्लेयर्स की राय

श्री संजय गर्ग, चेयरमैन, एसआरजी ग्रुप
यूपी में लाइसेंस जारी करने की प्रक्रिया में सरकार की गलती है, जिसके कारण राज्य के प्लाइवुड उद्योग में वर्तमान स्थिति पैदा हुई है। जब एनजीटी ने लकड़ी की उपलब्धता पर सवाल उठाया, तो राज्य सरकार सही औचित्य नहीं बता पा रही है। हमें नहीं लगता कि 18 दिसंबर, 2019 की सुनवाई पर भी एनजीटी आश्वस्त होगी। मुझे लगता है, यह तिथि अगले दो महीनों तक बढ़ जाएगी क्योंकि एनजीटी वन विभाग द्वारा दिए गए अनुचित औचित्य के मद्देनजर कोई आदेश जारी नहीं कर पा रहा है।

श्री वीरेन्द्र प्रकाश अग्रवाल, प्रेसिडंेट, बरेली प्लाइवुड मैन्यूफैक्चरिंग एसोसिएशन

लाइसेंस दिसंबर 2018 में जारी किया गया था और सितंबर 2019 में अदालत का स्टे लगाया गया। इस बीच कई लाइसेंसधारक अपनी योजनाओं के साथ आगे बढ़े और भारी निवेश किया। अगर सरकार एनजीटी को टिंबर उपलब्धता के आंकड़ों पर विश्वास नहीं दिला पा रही है, तो इसका मतलब है कि एजेंसी का डेटा प्रामाणिक नहीं है। अंतरिम लाइसेंस के आधार पर लोगों ने निवेश किया है जो वर्तमान में दांव पर लगा हुआ है।
 

श्री अशोक अग्रवाल, प्रेसिडेट, यूपी प्लाइवुड मैन्यूफैक्चरर्स वेलफेयर एसोसिएशन

विभाग द्वारा दिया गया सरकारी डेटा पूरी तरह से निराधार है। एक महीने में लकड़ी की मात्रा का उपभोग करने वाले उद्योग को एक वर्ष के लिए प्रस्तुत किया गया है! प्रस्तुत डेटा 25 वर्ष पुरानी इकाइयों पर आधारित था और अब कुशल प्रौद्योगिकी वाली मशीनें एक ही समय में आठ गुना अधिक लकड़ी की खपत करती हैं। लाइसेंस जारी करने से पहले वन विभाग ने ठीक से तैयारी नहीं की, वर्तमान स्थिति तो पैदा होना ही था। उन्हें इसकी समीक्षा करनी चाहिए और आगे का निर्णय लेना चाहिए। जारी किया गये अंतरिम लाइसेंस स्पष्ट रूप से लिखा है कि लाइसेंस का विषय कोर्ट के निर्णय क्षेत्र में हैं।

श्री अजय सरदाना, महासचिव, यूपी प्लाइवुड मैन्यूफैक्चरर्स वेलफेयर एसोसिएशन

एनजीटी ने औचित्य के साथ लकड़ी की उपलब्धता पर रिपोर्ट मांगी, लेकिन सरकार कोर्ट में तर्क पेश करने के कई मोर्चों पर विफल है, जिसके कारण औद्योगिक निवेशक असमंजस की स्थिति को फंसे हैं। कई लोगों की राय है कि नियम और शर्त के रूप में एक क्लॉज है, लेकिन हम यह कहना चाहते कि यदि यह स्थिति थी, तो अदालत के अंतिम निर्णय से पहले या अधिकरण के मंजूरी बिना लाइसेंस जारी नहीं किया जाना चाहिए था। यह क्लॉज यह इशारा करता है कि सटेके होल्डर्स ने अपने जोखिम पर निवेश किया है, सरकार के बलबूते नहीं। एनजीटी ने वन विभाग द्वारा लकड़ी की उपलब्धता पर प्रस्तुत आकड़ों से इनकार करते हुए मानदंडों के अनुसार मामले की समीक्षा करने के लिए कहा है।

राजेंद्र अरोड़ा, निदेशक, गंगा विनियर, बरेली

हम उम्मीद कर सकते हैं, कि भले ही विनियर पीलिंग और आरा मशीन के लाइसेंस की अनुमति न हांे, पर कुछ प्लाइवुड प्रेस लाइसेंसों को पेस्टिंग प्रेस के रूप में जारी रखा जा सकता है। मुझे लगता है, अगर लाइसेंस अंतरिम था, तो निवेशकों को आगे नहीं बढ़ना चाहिए था। शायद कुछ ही आगे बढ़े, क्योंकि उनके पास दूसरी योजना थी कि अगर नए लाइसेंस में कोई परेशानी है तो वे पुरानी खरीद लेंगे। जिन लोगों ने निवेश किया है, वे ज्यादातर सटरिंग प्लाइवुड उत्पादन करने के इरादे से लगाए हैं। वैकल्पिक रूप से, अधिकांश मशीनों का उपयोग लैमिनेट उत्पादन में भी किया जा सकता है। कई लोग सोच रहे हैं कि अगर नया लाइसेंस नहीं मिला तो वे इसे लेमिनेट उत्पादन फैसिलिटी में बदल देंगे। किसान पहले से ही अच्छी स्थिति में हैं क्योंकि एक साल में पोपलर लॉग की कीमत तीन गुनी तक बढ़ गई है।

श्री रवि नेमानी, निदेशक, नेमानी ग्रुप, बरेली

जैसा कि वर्तमान में प्लाइवुड उद्योग विभिन्न चुनौतियों से जूझ रहा है तो इस स्थिति में आने वाले समय में कम इकाइयाँ होंगी, तो ज्यादा बेहतर होगा। नए लाइसेंस प्राप्त कर्ताओं में से कई ऐसे हैं जो पुराने प्लेयर्स हैं। वे कहीं न कहीं प्रक्रिया को समायोजित कर रहे हैं और विभिन्न दुसरे इंडस्ट्री में बदल रहे हैं जैसे कई लोग लैमिनेट उद्योग अपना रहे हैं या एक गोदाम के रूप में भूमि का उपयोग कर रहे हैं। यदि अदालत की कार्यवाही एक वर्ष तक जारी रहती है तो पहले से निवेश कर चुके लोग अपना उद्योग स्थापित नहीं कर पाएंगे।

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