कोविड काल, कमिटमेंट और मजबूत चरित्र को परखने का समय है। जून के महीने में कुछ अच्छी खबरें आई, क्यांेकि बाजार में रिकवरी शुरू हो गई और इस महीने औसतन 40 फीसदी व्यापर होने का अनुमान है। विभिन्न प्रोडक्ट कैटेगरी मे अलग अलग तरीके से सेल देखने को मिला, लेकिन सभी उत्पादों का ग्राफ ऊपर ही चढ़ा। निःसन्देह इकोनॉमिकल ग्रेड प्रोडक्ट की मांग अच्छी रही, इसमें सक्षम कंपनियों और डिस्ट्रीब्यूटरों को फायदा भी हुआ, लेकिन कमजोर प्लेयर्स को कोई लाभ नहीं मिल सका। क्यांेकि कोई उत्पाद सस्ता तभी होता है जब वह 1) वॉल्यूम में हो और 2) जिसका प्रोसेस और स्टैंडर्डाइजेशन अच्छा हो और ये दोनो फैक्टर मुख्यतः बड़े प्लेयर्स के लिए ही संभव हो पाता है। छोटे और माध्यम एंटरप्राइजेज को इस बदलाव को समझना होगा, और इन्हें इन्तजार किए बिना अब काम करना होगा।
कोविड के बाद सबसे ज्यादा प्रभावित, वे इंटरप्राइजेज, डीलर और डिस्ट्रीब्यूटर हैं जो वुड पैनल इंडस्ट्री और व्यापर में थोड़ी सी पूँजी से तुरंत पैसा बनाने के लिए आए थे। नोटबंदी के पहले, बिना कोई ज्यादा पूँजी के इस व्यापार में अच्छी कमाई कर रहे थे। इसलिए बिना कोई तैयारी के और असंगठित तरीके से व्यापार करने वालों की संख्या तेजी से बढ़ी। इसमें कई लोगों का काम ठीक चल रहा था लेकिन अब कमजोर और उधार पर टिका व्यापार धराशाई हो रहा है और वे तास के पत्तांे की तरह बिखरते जा रहे हैं।
नोटबंदी के बाद व्यापारियों को बाजार में टिके रहने के लिए आमदनी पर टैक्स देना और बैंकिंग के साथ काम करना जरूरी हो गया। जीएसटी ने एक और प्रहार किया और उन्हें फॉर्मल बिजनेस में आने को मजबूर किया। अब कोविड -19 एक-एक इंटरप्राइजेज की शक्ति और चरित्र की जांच कर रहा है। 2017 में नोटबंदी ने अपने खुद की पूँजी लगाने की प्रथा को स्थापित किया। 2018 में जीएसटी ने बुक और फॉर्मल बिजनेस अपनाने को मजबूर किया और अब 2019-20 उनकी शक्ति और किसी भी मुसीबत से जूझने की योग्यता का लिटमस टेस्ट कर रहा है। इसलिए जुगाड़ से कोई फायदा नहीं होने वाला, स्ट्रक्चरल और प्रभावकारी क्रियाकलाप अपनाने में ही भविष्य निहित है। यह सही है कि एमएसएमई के लिए राहे आसान नहीं हैं क्योकि उनके पास बहुत थोड़े ही विकल्प हैं। फिर भी इस मुसीबत भरे समय के भी कई एडवांटेज है जो उनके कमिटमेंट (करेक्टर), कैप्टल (इंफ्रास्ट्रक्चर और बेस) और कल्चर (संगठित तरीके से काम करने) से प्राप्त किया जा सकता है।
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