इपिर्ति को सरकारी मदद बंद करने की सिफारिश, उद्योग को ईमानदारी से पहल करने की जरूरत

person access_time4 01 December 2020

इपिर्ति भारत में प्लाइवुड और पैनल उत्पादों के लिए पूरी तरह से समर्पित संस्थान है, जिसने भारत के वुड पैनल सेक्टर को आगे बढा़ने और आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए बहुत कुछ दिया है। पर्यावरण और वन मंत्रालय से इपिर्ति को अलग करने की सरकार के प्रस्ताव को लेकर, वैज्ञानिक और संबंधित लोग सहमत नहीं हैं। उद्योग में चल रही इस चर्चा के बीच, यह तथ्य सामने आ रहा है, कि अगर तकनीक चाहिए तो प्लाइवुड और पैनल इंडस्ट्रीज को इपिर्ति का मदद करने के लिए आगे आना होगा।

वित्त मंत्रालय की ओर से, पर्यावरण और वन मंत्रालय (डवम्थ्) से देश के पांच प्रमुख पर्यावरण-वन-वन्यजीव संस्थानों के साथ-साथ इंडियन प्लाइवुड इंडस्ट्रीज रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट (इपिर्ति) को भी ‘अलग‘ करने का प्रस्ताव आया है। पर्यावरण मंत्रालय के अंतर्गत 16 स्वायत्त निकायों की समीक्षा के बाद व्यय विभाग (वित्त मंत्रालय) द्वारा इनको मंत्रालय की जिम्मेदारी से अलग करने का प्रस्ताव किया गया है। पर्यावरण मंत्रालय को एक प्रस्ताव भेजा गया है, जिसमें सरकार की जिम्मेदारी से इन्हें अलग करने के संबंध में व्यय विभाग द्वारा की गई सिफारिशों का विस्तृत विवरण है।

प्रस्ताव के अनुसार, ‘अलग करने‘ में दो पहलू होंगे - समयबद्ध तरीके से संस्था को सरकारी सहायता समाप्त करना, संस्था के प्रबंधन में सरकारी जिम्मेदारी को समयबद्ध तरीके से समाप्त करना, संस्थानों के प्रबंधन से अपने आपको अलग करना और संबंधित उद्योग को उन्हें चलाने के लिए अनुमति देना। सिफारिशों में आगे कहा गया है कि केंद्र सरकार को इन निकायों से हर साल बजट में 25 फीसदी की कमी कर तीन साल की समय-सीमा के भीतर खुद को अलग करना होगा।

अलग करने‘ की रिपोर्ट ने वुड प्रौद्योगिकीविदों, वैज्ञानिकों, इपिर्ति के कर्मचारियों, वुड कंसलटेंट, शोधकर्ताओं, आदि के साथ पूरे वुड पैनल और प्लाइवुड सेक्टर में बड़ी हलचल पैदा कर दी है। इपिर्ति देश में वुड और अन्य लिग्नोसेल्युलॉजिक मेटेरियल से पैनल उत्पाद बनाने संबंधित अनुसंधान, प्रशिक्षण और परीक्षण गतिविधियाँ संपन्न करने वाला इकलौता संस्थान है। लगभग 75 कर्मचारी वाले इस संसथान के वेतन रख रखाव आदि के लिए लगभग 10 करोड़ रुपये की आवश्यकता है, जबकि सभी स्रोतों से इसकी कमाई प्रति वर्ष लगभग 1 करोड़ रुपये से अधिक नहीं है, जो कि सरकारी निकाय से अलग होने के बाद और कम हो सकती है। इसलिए इसका अस्तित्व में रहना संभव नहीं है और पर्यावण मंत्रालय से इसके अलग हो जाने से देश में इस तरह की गतिविधियां आगे नहीं बढ़ सकेगी। इसलिए, सभी से इस इकलौता संस्थान को पर्यावरण मंत्रालय के अंतर्गत वर्तमान की स्वायत्त निकाय के रूप में बनाए रखने की मांग की गई है।

उन्होनें आगे कहा कि इस संस्थान के भविष्य पर उद्योग और वैज्ञानिकों से परामर्श किये बिना कोई कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए। ग्रीनप्लाई, सेंचुरीप्लाई, आदि जैसे उद्योग अपनी ताकत तथा बुनियादी ढांचे और पर्यावरण मंत्रालय को दिए योगदान के आधार पर इस प्रलय में अपने आप को बचा सकते है। इसलिए उद्योग का तेज और सही दिशात्मक विकास के लिए, सभी स्टेकहोल्डर के साथ सहयोग और चर्चा आवश्यक है। अगर अधिकारी इसे जल्द समझ लेते हैं तो यह हमारे देश के लिए बेहतर होगा ।

इपिर्ति के पूर्व निदेशक डॉ. एम. पी. सिंह, सलाह देते हैं कि पहला प्रयास कुछ अन्य संस्थान के सहयोग के साथ यथास्थिति बनाए रखने की है, जो वेतन को छोड़कर कॉर्पस फंड से प्राप्त ब्याजसहित अपनी गतिविधियों को बनाए रखने के रूप में आ सकता है। दूसरा विकल्प प्ब्थ्त्म् के साथ विलय का है, जो WIIऔर IIFM पर भी लागू होगा। विलय के साथ, ठवळ या सोसाइटी केm रूप में एक फोरम जो पर्यावरण मंत्रालय के साथ उच्चतम स्तर पर बातचीत के लिए उद्योगों को उपलब्ध है, ऐसी पहल होनी चाहिए। वुड काउंसिल ऑफ इंडिया WCI के जैसे सभी वुड बेस्ड इंडस्ट्री के लिए इपिर्ति सोसाइटी को भी एक व्यापक मंच के रूप में संशोधित किया जा सकता है। हमें विकल्पों के लिए तैयार रहना होगा। संस्थाओं और इसके हितधारकों के बिना कोई इच्छा व्यक्त किये यह विकल्प नहीं हो सकता है, क्योंकि इसके बिना इसका सतत विकास संभव नहीं है।

आईटीसी के उपाध्यक्ष श्री सुनील पांडे, का मानना है कि पर्यावरण मंत्रालय ने संस्था के वित्त पोषण से खुद को अलग करने के लिए 4 साल का समय दिया है और ये वास्तव में पर्यावरण मंत्रालय और सरकार के फैसले के पक्ष में है। उनका कहना है कि सभी हितधारकों को अब संस्था के भविष्य के लिए एक योजना तैयार कर इसके बोर्ड के बैठक करनी चाहिए। विभिन्न स्टेकहोल्डर्स के मूल्यवर्धन के आधार पर, उन्हें शोध की विभिन्न गतिविधियों की आवश्यकता और प्रासंगिकता के अनुसार संस्थान को फंड मुहैया कराने के लिए आगे आना चाहिए।

भारत सरकार को भी कुछ मौलिक अनुसंधान क्षेत्रों के लिए भी धन देना चाहिए, जो भले ही उद्योग के लिए तुरंत प्रासंगिक नहीं हो पर भविष्य के लिए प्रासंगिक हो सकता है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि स्टेकहोल्डर्स के लिए प्रासंगिक अनुसंधान परियोजनाओं के लिए इपिर्ति कार्य करता है और स्टेकहोल्डर्स इसके के लिए भुगतान करता है। यह समय की जरूरत है, साथ ही यह संस्थान के दीर्घकालिक अस्तित्व को भी सुनिश्चित करेगा।

इपिर्ति के पूर्व संयुक्त निदेशक डॉ. एस के नाथ ने कहा कि समृद्ध उद्योगपतियों ने यह मान लिया है कि प्रौद्योगिकी सौर किरणों की तरह है जो जरूरत पड़ने पर हमेशा उपलब्ध हो जाएगी, ऐसा नहीं होने जा रहा है। गुणवत्ता में सुधार किये बिना कोई भी उत्पाद बाजार में कभी नहीं टिक सकता और कोई भी उद्योग त्-क् के बिना जीवित नहीं रह सकता। इपिर्ति को प्लाइवुड उद्योग द्वारा अस्तित्व में लाया गया था ताकि उद्योग की जड़ें मजबूत हो सके। उद्योग को अपने भविष्य के लिए भी इसकी आवश्यकता होगी। वास्तव में सभी अनुसंधान गतिविधियां, प्रशिक्षित जनशक्ति, परीक्षण गतिविधियां, फैक्ट्री विजिट जैसी सभी फायदे उद्योग को मिलते है। अब इसके भविष्य के लिए इंडस्ट्री क्या कहेगी?

इपिर्ति के पूर्व निदेशक डॉ. सी. एन. पांडे को विश्वास है कि इपिर्ति और पैनल उद्योग एक दूसरे के लिए बने हैं। वे परस्पर इतने जुड़े हुए हैं कि उन्हें अलग नहीं किया जा सकता। बाकी उन्होंने आश्वासन दिया कि इपिर्ति भविष्य में उद्योग के समर्थन से बेहतर स्थिति में होगा।

इपिर्ति कोलकाता के श्री एससी साहू का कहना है कि इपिर्ति भारत में पर्यावरण मंत्रालय के अंतर्गत प्रमुख अनुसंधान और विकास संगठनों में से एक है, जो वुड, इंजीनियर वुड के उत्पादों, कृषि वानिकी और बांस के उत्पादों के कंपोजिट और वुड बेस्ड पैनल इंडस्ट्री को इसके क्वालिटी बेहतर करने, नए उत्पाद विकसित करने, प्रोसेस, पर्यावरणीय सुरक्षा, ऊर्जा संरक्षण आदि के लिए सलाहकार के रूप में है, तथा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण आदि प्रदान करता है।

इपिर्ति पर्यावरणीय प्रदूषण से बचने के लिए हानिकारक गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए इकोलॉजिकल एडेसिव, ग्रीन प्रिजर्वेटिव पर काम कर रहा है। इपिर्ति एक वर्ष और लघु प्रशिक्षण पाठ्यक्रम के माध्यम से उद्योग और छात्रों को प्रशिक्षण प्रदान करता है और लगभग 100 फीसदी प्लेसमेंट प्रदान कररोजगार के अवसर प्रदान करता है। सरकार के निर्देशानुसार पर्यावरण मंत्रालय से अलग करने के आदेश से अनुसंधान औरविकास, प्रशिक्षण, परीक्षण आदि पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा, जिसके चलते 3500 से अधिक वुड बेस्ड पैनल उद्योग को नुकसान होगा। इसलिए सरकार को इस विघटनकारी निर्णय के आदेश को वापस लेना चाहिए और पहले की तरह इसे पर्यावरण मंत्रालय के तहत बनाए रखना चाहिए।

वुड टेक्नोलॉजिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष श्री एस सी जॉली भी इपिर्ति को समर्थन करने की मांग करते हैं, और कहते हैं कि संस्थान का भारतीय वुड पैनल उद्योग के विकास और तकनीकी सहायता प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका है। इपिर्ति का समर्थन, आत्मनिर्भर भारत के सरकार के मिशन में मदद करेगा। इंडियन प्लाइवुड उद्योग अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान (इपिर्ति) राष्ट्रीय महत्व का एक महत्वपूर्ण अनुसंधान संस्थान है, जिसका मुख्यालय बेंगलुरु में स्थित है जो लकड़ी के अवशेषों और बांस आधारित पैनल उत्पादों सहित वुड सेक्टर में अनुसंधान, प्रशिक्षण, परीक्षण और विस्तार गतिविधियों में संलग्न है। यह उत्पाद गैर-नवीकरणीय मेटेरियल जैसे स्टील, कंक्रीट,प्लास्टिक आदि की तुलना में पर्यावरण के लिए बेहतर माने जाते है। संस्थान को 2016 में इपिर्ति के एकेडमिक ऑडिट के दौरान मंत्रालय की उत्कृष्टता केंद्र के रूप में भी मान्यता दी गई है।

स ंस्थान क े अन ुस ंधान, प्रशिक्षण कार्य क्रमा े ं का े जलवाय ु परिवर्त न का े रा ेकन े, किसाना े ं की आय बढ ़ान े, का ैशल विकास, आयात प्रतिस्थापन, म ेक इन इ ंडिया पर जा ेर द ेन े ज ैस े कार्य क्रम सरकार की जरूरतों के अनुरूप ही है। इपिर्ति एक उत्कृष्ट मान्यता प्राप्त अन ुस ंधान स ंस्थान ह ै, जा े व ुड आ ैर अन्य लिग्ना ेस ेल्य ुलॉजिक क ंपा ेजिट क े क्ष ेत्र म े ं विभिन्न तकनीका े ं का ेविकसित करन े म े ं सहायक ह ै। पर्या वरण म ंत्रालय क े तहत एक सरकारी निकाय क े रूप म े ं मान्यता क े कारण, इपिर्ति  का ेउद्या ेग आ ैर सरकारी निकाया े ं स े प्राया ेजित परिया ेजनाय े ं प्राप्त होती रही है।

इपिर्ति, नाममात्र की फीस के साथ 1989 के बाद से केवल एक वर्ष का स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रम चला रहा है, जिसमें 30 युवाओं को प्रशिक्षण दिया जाता है, जो मुख्य रूप से देश के ग्रामीण और अर्ध शहरी क्षेत्रों से संबंधित होते हैं। इस पाठ्यक्रम के संचालन में लगने वाली लागत इसके शुल्क से कई गुना अधिक है। यह प्रशिक्षण पाठ्यक्रम केवल समाज की जरूरतों को पूरा करने और मानव संसाधन विकसित करने के लिए आयोजित किया जाता है। इपिर्ति एक ऐसा शोध संस्थान है, जिसने व्यावसायिकरण के लिए प्रयोगशाला से कारखाने के फर्श तक वुड और वुड बेस्ड पैनल उत्पादों से संबंधित विभिन्न तकनीक को सफलतापूर्वक लागू किया है। इपिर्ति से अपने च्ळक् पाठ्यक्रम को पूरा करने के बाद छात्र प्लाइवुड और पैनल उद्योगों की सेवा कर रहे हैं।

लगभग 75 कर्मचारी वाले इस संसथान के वेतन रख रखाव आदि के लिए लगभग 10 करोड़ रुपये की आवश्यकता है, जबकि सभी स्रोतों से इसकी कमाई प्रति वर्ष लगभग 1 करोड़ रुपये से अधिक नहीं है, जो कि सरकारी निकाय से अलग होने के बाद और कम हो सकती है। इसलिए इसका अस्तित्व में रहना संभव नहीं है और पर्यावण मंत्रालय से इसके अलग हो जाने से देश में इस तरह की गतिविधियां आगे नहीं बढ़ सकेगी। इसलिए, सभी सेइस इकलौता संस्थान को पर्यावरण मंत्रालय के अंतर्गत वर्तमान कीस्वायत्त निकाय के रूप में बनाए रखने की मांग की गई है।

यह इपिर्ति के सहयोग से विकसित प्रौद्योगिकी और प्रशिक्षित जनशक्ति ही है, जिसके माध्यम से वुड पैनल उद्योग ने लकड़ी का तर्कसंगत उपयोग सीखा है और विश्व स्तरीय प्लाइवुड और अन्य वुड बेस्ड प्रोडक्ट का निर्माण कर सकता है। यह वह संस्थान है जिसने बम्बू बेस्ड प्रोडक्ट के लिए टेक्नोलॉजी का विकास किया, जिसके द्वारा हस्तशिल्प से लेकर बड़े उद्योगों तक में बांस ने अपना स्थान बनाया है। इपिर्ति ने कृषि-अवशेषों को मूल्य वर्धित वाणिज्यिक उत्पादों के रूप में उपयोग करने के लिए प्रौद्योगिकियों का विकास किया है। इपिर्ति उद्योगों द्वारा स्थापित किया गया था अब उद्योग को ही पर्यावरण मंत्रालय से संपर्क कर वर्तमान स्थिति में संस्थान को बरकरार रखने के लिए सिफारिश करनी होगी। वुड बेस्ड पैनल उद्योग पूरी तरह से सभी तकनीकी सहायता और मानकीकरण गतिविधियों के लिए इपिर्ति पर निर्भर हैं।

भारतीय प्लाइवुड और पैनल उद्योग का 90 फीसदी इकाइयां असंगठित क्षेत्र में हैं और कुछ ही उद्योग अच्छी तरह से स्थापित हैं और ये थोड़े उद्योग इसके अस्तित्व के लिए इपिर्ति का पूर्ण वित्त पोषण नहीं प्रदान कर सकते। इसलिए इपिर्ति को अनुसंधान और प्रशिक्षित जनशक्ति के माध्यम से असंगठित क्षेत्रों के उत्थान के लिए विचार करने की आवश्यकता है और इसलिए संस्थान का अस्तित्व बचाए रखना बहुत आवश्यक है।

You may also like to read

shareShare article
×
×